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________________ २२६ भगवतीसूत्रे लिकाः इति श व्यवहारो भवति, यार-मुहूर्तादयः इतिवा व्यवहारो भवति, अवसपिण्य इति वा व्याहारो भवति, एतेषां सर्वेषां समयावलिकाद्युत्सविण्यवसपिणीपर्यन्तानां कालविशेषाणां व्यवहारप्रवर्तकः मूर एव वर्तते, तथाहि-सूर्योदय मवधि कृत्या अहोरात्रारम्भका समयो व्यपदिश्यते, एवं रीत्यैव आवलिका मुहूर्ता. दयश्च व्यपदिश्यन्ते, तत्-अथ, तेनार्थेन-तेन कारणेन, यावत्-मुरः आदित्य इति व्यपदिश्यते, अहोरात्रसमयादीनाम् आदी भवा आदित्यः इति व्युत्पत्तेः ।।मू० ३।। चन्द्रसूर्ययोरग्रमहिण्यादिवक्तव्यता । मूलम्--चंदस्स णं भंते! जोइसिंदक्षस जोइलरन्नो कई अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, जहा दसमलए जाव णो चेवणं मेहुणवत्तियं । सूरस्स वि तहेव । वंदिमसूरियाणं भंते जोइ. सिंदा, जोइसरायाणो केरिसए कामभोगे पच्चणुव्भवमाणा विहरति ? गोयमा ! से जहानामए केइपुरिसे पढमजोव्वणु. हाणबलत्थे पढमजोबट्ठाणवलत्याए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहकज्जे अत्थगसगयाए लोलसवासविष्पवालिए, से णं तओ लद्धटे कयकज्जे अणहसमरगे पुणरवि नियगगिहं प्रवर्तक मूर्य ही है-अर्थात् यह समय है, ऐला जो व्यवहार होता है, यह आवलिका है ऐसा जो व्यवहार होता है, यह मुहर्त है ऐसा जो व्यवहार है लथा यछ अवसर्पिणीकाल है यह उत्सर्पिणीकाल है ऐसा जो व्यवहार होता है सो इन सघ पयहारों का आदिरूप में प्रवत्तक सूर्य ही है इसलिये इसका नाम अहोरात्र समय आदिकों की आदि में जो होता है वह आदिस्य है इस व्युत्पत्ति के अनुसार आदित्य म्हमा है ।स०३।। કે આ સમય છે, એ જે વ્યવહાર થાય છે આ આવલિકા છે, એ જે વ્યવહાર થાય છે, આ મુહૂર્ત છે એ જે વ્યવહાર થાય છે, આ અવસર્પિણ કાળ છે આ ઉત્સપિંણ કાળ છે, એ જે વ્યવહાર થાય છે તે બધા વ્યવહારેને આદિ શ્વક સૂર્ય જ છે તેથી તેનું નામ, અહોરાત્ર સમય આદિકેની આદિમાં હોય છે તે આદિત્ય છે આ પ્રકારની વ્યુત્પત્તિ અનુસાર सूर्य नु' माहित्य' नाम ५७यु छ, भने ते नाम साथ छे. सू०3।।
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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