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________________ प्रमेयंचन्द्रिका टीका शे० १२ उ० ५ सू०२ प्राणातिपातादिविरमणनिरूपणम् १७६घनोदधिः, सप्तमी नारकपृथिवी च पञ्चवर्णद्विगन्धपञ्चरसाष्टस्पर्शवत्वेन वक्तव्या, 'छडे उवासंतरे अवण्णे' पष्ठम् अवकाशान्तरम् आकाशखण्डात्मकम् अमूर्तत्वेन अवर्णम्, अगन्धम् , अरसम् , अस्पर्शम् अबसेयम् , 'तणुवाए जाव छट्ठी पुढवी, एयाइं अट्ठफासाई षष्ठः तनुवातो यावत् षष्ठो घनवातः, षष्ठो घनोदधिः, षष्ठी पृथिवी च, एतानि चत्वारि वस्तूनि पौगलिकत्वेन मूततया पञ्चवर्णादियुतानि अष्टस्पर्शानि प्रज्ञप्तानि, 'एवं जहा सत्तमाए पुढवीए वत्तव्वया भणिया, तहा जाव पढमाए पुढवीए भाणियनं' एवं-पूर्वोक्तरीत्या, यथा सप्तम्याः पृथिव्याः वक्तव्यता पञ्चवर्णावष्टस्पर्शवत्वेन भणिता तथा यावद-पञ्चम्याश्चतुर्या स्तृतीयाया द्वितीयायाः प्रथमायाश्च नारकपृथिव्या भणितव्यम्, पञ्चवर्णद्विगन्ध से सातवें तनुवात के विषय में कहा जा चुका है-उसी प्रकार से सातवां घनवात, सातवां धनोदधि और सातवी नारक पृथिवी ये सब पांच वर्णों वाले, पांच रसोवाले, और आठ स्पर्शवाले हैं ऐसा कहना चाहिये 'छडे उचासंतरे अवण्णे' छठा जो अवकाशान्तर-आकाशखण्डात्मक खाली स्थान-अमृत होने से वर्ण विना का है गंध विना का है, रस. विना का है और स्पर्श विना का है । (तणुवाए जाच छट्ठी पुढवी, एयाई अट्ठफालाई ततुवात यावत्-छठा घनवात, छठा घनोदधि और छठी पृथिवी पौगलिक होने के कारण मूर्तमान हैं इसीलिये ये पांचवर्ण आदि गुणोंवाले हैं, एवं आठ स्पर्शवाले हैं । ' एवं जहा-सत्तमाए पुढवीएं वत्तव्वया भणिया, तहा जाब पढमाए पुढचीए भाणियव्वं' पूर्वोक्त रीति के अनुसार जैसी वक्तव्यता सप्तमी पृथिवी के विषय में कही गई है उसी प्रकार की पंचवर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श से કથન કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણે સાતમા ઘનવાત, સાતમા ઘદધિ અને સાતમી નરક પૃથ્વીને પણ પાંચ વર્ણ, બે ગંધ, પાંચ રસે भने भाउ ५५वा सभा "छट्टे उवासंतरे अवणे" २ छ અવકાશાન્તર-આકાશમંડાત્મક ખાલી સ્થાન) છે, તે પણ અમૂર્ત હોવાને आरणे हित, पति, २२डित भने २५२हित छ. “ तणुवाए जाव छवी पुढवी; एयाई अढ फासाइ" हु तनुपात, 'छ ઘનવાત, છઠ્ઠો ઘદધિ અને છઠ્ઠી પૃથ્વી આ ચારે પૌલિક હોવાને કારણે મૂર્ત છે, તે કારણે તેમને પાંચ વર્ણ, બે ગધ, પાંચ રસ અને આઠ पाथी युद्धत समान . "एव जहा सत्तमाए पुढवीए वत्तव्वया भणिया, तहा जाव पढमार पुढवीए भाणियव्वं" न विषयमा वा વક્તવ્યતા સાતમી પૃથ્વો વિષે કરવામાં આવી છે, એવી જ વક્તવ્યતા પાંચમી ચેથી, ત્રીજી, બીજી અને પહેલી પૃથ્વીના વિષયમાં પણ થવી જોઈએ એટલે કે આ નરક પુત્રીઓને પણ પાંચ વર્ણોવાળી, બે ગધેવાળી, પાંચ રસોવાળી
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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