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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ८७ भवतः, 'अहवा तिन्नि अर्णतपएसिया खंधा भवंति ' अथवा त्रयः अनन्तप्रदेशिका: स्कन्धा भवन्ति । ' चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयी अणंतरएसिए खंधे भवइ' अनन्तपदेशिका सन्धश्चतुर्धा क्रियमाणः एकवस्त्रयः परमाणुपुद्गलाः भवन्ति, एकतः अनन्तमदेशिक: स्वन्धो भवति । एवं चउक संजोगो जाव असंखेज्जगसंजोगो' एवं-पूर्वोक्तरीत्या, चतुष्कसंयोगो यावत्पञ्चक षट्क सप्तकाष्टकनवकदशकसंख्येयकसंयोगः, असंख्येयकसंयोगश्च भणितव्यः । 'एए सब्वे जहेव असंखेज्जाणं भणिया तहेत्र अणंताणा ति भाणियन्या' एते उपर्युक्ताः सर्वे अभिलापकाः यथैव असंख्यकानां भणिता:-उक्तास्तथैव अनन्तानामपि भणितव्या:-वक्तव्याः, 'नवरं एकं अणंतगं अमहियं भाणियव्वं 'अहवा-तिनि अणंतपएसिया खंधा भवंति' अथवा तीन अनन्तप्रदे-- शोंवाले स्कंध होते हैं । 'चउहा कज़माणे एगयो तिभि परमाणुपो. ग्गाला, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवह' यह अनन्त मदेशिक स्कंध जब चार प्रकाररूप भागों में विभक्त किया जाता है-तब एक भाग में तीन परमाणुपुद्गल होते हैं, और अपरभाग में एक अनन्तमदेशी स्कन्ध होता है। 'एवं चउकसंजोगो जाव असंखेज्जगसंजोगा' पूर्वोक्त रीति के अनुसार चतुष्कसंयोग यावत् पंचक, षट्क, सप्तक, अष्टक, नवन, दशक संख्येयक और असंख्येयक संयोग कहना चाहिये 'एए सव्वे जहेव असंखेजाणं भणिया तहेव अणंतागा वि भाणियन्दा' ये उपयुक्त समस्त अभिलापक जिस प्रकार असंख्यातों के कहे गये हैं उसी प्रकार से अनन्तों के भी कहना चाहिये 'नवरं एकं अणतगं अमहियं छ. “ अहवा-तिन्नि अणतपएमिया खंधा भवंति " अथवा मनात अशी त्रय २४५ ३५ त्रय माग पर थ श छ. " चहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गले, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भव" ते मनात प्रशी २४धना જ્યારે ચાર વિભાગે કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ પુદ્ગલ વાળા ત્રણ વિભાગો થાય છે અને અનંત પ્રદેશી &ધ રૂપ જે વિભાગ, थाय छे. " एवं चउकसंजोगो जाव असंखेज्जगसंजोगो" यार मोहना यतु. सयाजी, पयासयोगी, पटूश्यागी, ससयासी, मासयी, न४सयासी, દશકસગી, સંખેયકસંગી અને અસ ગેસ ચગી વિકલ્પોનું કથન पूरित पद्धति अनुसार ४२ न. " एए सव्वे जहेव असंखेज्जाणं भणिया तहेव अणंताणा वि भाणियव्वा" भन्यात प्रशी २४ घना समयमा वा વિકલ્પ પ્રકટ કરવામાં આવ્યા છે, એવાં જ વિકલ્પ અનંત પ્રદેશ સ્કંધના अपयुत विभागा वि ५ सभा नये. “ नवरं एक अणंतगं अन्भ
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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