SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ a unlod भगवतीने अथवा एको रत्नप्रभायां द्वौ शर्क राप्रभायाम् एकोऽधः सप्तम्यां भवति५ (१०)। अथ ' द्वौ एकः, एकः' इति विकल्पमाड - अहवा दो रयणप्पभाए पगे सकारप्पभाए, एगे वालयप्पमाए होज्जा' अथवा द्वौ रत्नप्रभायाम् एकः शर्कराममायाम् , एको चालुकाप्रभायां भवति १, ‘एवं जाव अहवा दो रयणप्पमाए, एगे सक्करापभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत अथवा ही रत्नप्रभायाम् , एक शर्कराप्रभायाम्, एकः पङ्कप्रभायां भाति २, अधवा ही रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करापभायाम् , एको मप्रभायां भवति ३, अथवा द्वी रत्नप्रभायाम् एकः शकेरामभायाम् एकस्तमायां भवति ४, अथवा द्वी रत्नप्रभाशर्कराप्रभा में और एक नारक तमःप्रभा में उत्पन्न होता है ४, अथवा-एक नारक रत्नप्रभा मे दो नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न होता है ५, इग्न प्रकार से ये यहां तक १० भंग हैं। अब दो एक एक इस विकल्प की अपेक्षा से जो ५ भंग होते हैं उन्हें सूत्रकार प्रकट करते हैं -(अहवा-दो रयणप्रभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालयप्पभाए होज्जा ) अथवा-दो नारक रत्न. प्रभा में उत्पन्न होते हैं, एक नारक शकराप्रभा में उत्पन्न होता है और एक नारक वालुकाप्रभा में उत्पन्न होता है १, (एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, और एक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाता है२, अथवा-दो रत्नप्रभामें, और एक शर्कराप्र भामें एक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है ३, अथवा-दो नारक रत्नप्रभामें, एक शराप्रभामें और एक तमामभामें उत्पन्न हो जाता है४, अथवा दो रत्नप्रभामें, एक રત્નપ્રમામા, બે શર્કરામભામાં અને એક તમ પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૫) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, બે શર્કરામભામાં અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે ૧૦ ભાંગ પ્રકટ કરીને હવે ૨-૧-૧ ના વિકલ્પની અપેક્ષાએ 2 पाय Hiu थाय छ ते ५४८ ४२वामा मावे छ-'' अहवा दो रयणप्रभाए, एगे सफरप्पमाए, एगे वालयप्पभाए होज्जा” (१) अथवा मे ना२४ २त्नप्रभामा ઉત્પન્ન થાય છે, એક નારક શર્કરા પ્રભામાં ઉપન થાય છે અને એક નારક पालामा उत्पन्न थाय छे. “ एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभॉप, एगे जाव अहे सत्तमाए होज्जा" (२) मथा मे २त्नप्रसाभां, मे શર્કરામભામાં અને એક કપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૩) અથવા બે રત્નપ્રભામાં, એક શર્કરા પ્રભામાં અને એક ધૂમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે (૪) અથવા બે રત્નપ્રભામાં એક શર્કરામભામાં અને એક તમ પ્રભામાં
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy