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________________ भगवतीसूत्रे ____ अथ चतुणी नरकसंयोगे, जायमानान् पश्चोत्तरशत भङ्गान् प्रदर्शयति, तत्र -' एकः, एकः द्वौ १ ' 'एकः, द्वौ एकः २ ' द्वौ, एकः, एकः ३' इति त्रयो विकल्पा भवन्ति,तत्र प्रथमम् एकः, एकः, द्वौ, इति विकल्पमाह-'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होजा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्क राप्रभायां, द्वौ वालुकाप्रभायां भवतः१, 'अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए दो पंकप्पभाए होजा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्क - राप्रभायाम् , हौं पङ्कप्रभायां भवतः २ ' एवं जाव एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् अथवा एको रत्नप्रभायाम् एकः शर्क राप्रभायां द्वौ धूमप्रभायां भवतः३, अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः अब सूत्रकार चार नारकों के संयोग में उत्पन्न १०५ मंगों को प्रकट करते हैं उनमें १-१-२, १-२-१, २-१-१, ये तीन विकल्प होते हैं-इन विकल्पों में से जो १-१-२ प्रथम विकल्प है उसकी अपेक्षा से सूत्रकार कहते है-(अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, दो बालयप्पभाए होज्जा ) अथवा एक नारक रत्न प्रभा में उत्पन्न हो जाता है और एक नारक शकराप्रभा में उत्पन्न हो जाता है तथा दो नारक वालकाप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं १, (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए दो पंकप्पभाए होज्जा २) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो जाता है, एक नारक शर्कराप्रभा में उत्पन्न हो जाता है और दो लारक पङ्कप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं २, (एवं जाब एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए, दो अहे लत्तमाए होज्जा) अथवा एक रत्नप्रभा मे उत्पन्न हो जाता है, एक शर्करा प्रभा में उत्पन्न हो जाता है और હવે સૂત્રકાર જુદી જુદી ત્રણ નરકમાં ઉત્પન્ન થતા ચાર નરકના જે १०५ विसया मा ( ८) थाय छे ते ५४८ ४रे छ. तेभा १-१-२, ૧-૨–૧ અને ૨-૧-૧, આ ત્રણ વિકલ્પ થાય છે. આ ત્રણ વિકલ્પોમાંથી જે ૧–૧-૨ ને પ્રથમ વિક૯પ છે, તે વિકપની અપેક્ષાએ નીચે પ્રમાણે Hin! थाय छ-" अह्वा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होज्जा" (१) PAथा मे ना२४ २त्नप्रभामा उत्पन्न थाय छ, से શરામભામાં ઉત્પન્ન થાય છે અને બે નારક વાલુકાપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. " अहवा एगे रयण पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो पकप्पभाए होज्जा" (२) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે, એક નારક શર્કરામભામાં उत्पन्न थाय छे मन मे ना२४ ५४प्रभामा 64-1 थाय छे “ एवजाव एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो अहे सत्तमोए होज्जा" (3) अथवा से
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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