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________________ प्रमैयन्द्रिका टी० श० ७० ६२ सू० ३ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् ५१., सप्तम्यां भवति ३-(२८) ' अहवा एगे वालयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा' अथवा एको वालुकाप्रभायां भवति, एको धूमप्रभायाम् , एकश्च तमायां भवति (२९) , अहवा एगे वालयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए. होज्जा' अथवा एको वालुकामभायां भवति, एको धूमप्रभायाम् , एकोऽध सप्तम्यां भवति २-(३०) 'अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा' अथवा एको नैरयिको वालुकामभायां भवति, एकस्तु तमायाम् , एकोऽध:सप्तम्यां भवति १-(३१) 'अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा' अथवा एक' पङ्कप्रभायां भवति, एको धूमप्रभायाम् , एकश्च तमायां भवति (३२) 'अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा' अधः ससमी में उत्पन्न हो जाता है २८, (अहवा एगे वलुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा) अथवा-एक नारक वालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में उत्पन्न हो जाता है २९, (अहवाएगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तनाए होज्जा ३०) अथवा एक नारक वालुकाप्रभा में एक नारक धूमप्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाता है ३०, अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा ) अथवा-एक नारक वालुकाप्रभा में, एक तमाप्रभा में और एक अधः सप्तमी में उत्पन्न होता है ३१, (अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा) अथवा-एक नारक पङ्कप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है ३२, (अहवा-एगे पंझप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा-एक नारक पङ्कप्रभा में एक धूमપ્રભામાં, એક પકભામાં અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए एगे तमाए होज्जा) (२८) अथवा એક વાલુકાપ્રભામાં, એક ધુમપ્રભામાં અને એક તમ પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે ( अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्ताए होज्जा) (३०) અથવા એક વાલુકાપ્રભામા, એક ધૂમપ્રભામાં અને એક નીચે સાતમી તમस्तममा न२४मा 4-1 थाय छे ( अहवो एगे वालुयप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमोए होज्जा) (३१) अथवा मे ना२४ पानामा, मेर तम.प्रभामा भने से नीय सातभी न२४मा उत्पन्न थाय छे. (अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए) (३२) अथवा : ५४मामा, मे धुममामा मने से तमामामi Gurd थाय छे ( अहवा एगे पंकप्पभाए
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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