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________________ ઘુંટ भगवती सूत्रे अर्धमासिक्या संलेखनया त्रिंशसक्तानि अनशनतया - अनशनेन छिनत्ति, 'छेत्ता तस ठाणस्स अगालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किचा लंतए कप्पे जात्र उव बन्ने' छित्वा तस्य स्थानस्य अनालोचितमतिक्रान्तः - आलोचनप्रतिक्रमणमकृत्वा कालमासे कालं कृत्वा लान्तके कल्पे यावत् त्रयोदश सागरोपमस्थितिकेषु देवत्रिवि देवेषु देवकिल्लिपिकतया उपपन्नः - उत्पत्ति प्राप्तवान् ॥०१६ ॥ मूलम् - " जमाली णं भंते ! देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खणं जाव कहिं उववज्जिहि ? गोयमा ! चत्तारि पंच तिरिक्ख जोणिय मणुस्स देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियद्वित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिइ जाव अंतं काहेइ, सेवं भंते! सेवं भंते ! ति ॥ सू० १७ ॥ ( जमाली समत्तो ) लगाए छेदेह ' इस अर्द्धमासिक संलेखना से अपने शरीर को कृश करके उसने अनशन द्वारा तील ३० भक्तों का छेदन किया-' छेदेत्ता तस्त ठाणस्त अणालोयपडिते कालना से कालं किच्चा नए कप्पे जाव उववन्ने' छेदन करके भी उसने अपने पापस्थानक की न आलो. चना की और न उसका प्रतिक्रमण किया - इस तरह पापस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण को नहीं करने से यह काल अक्सर कालकर लान्तककल्प सें १३ सागरोपम की स्थितिवाले देवकिल्विषिक देवों में जो किल्पिक देव होते हैं उन देवों में - यह १३ सागरोपम की स्थितित्राला किल्विषक देवरूप से उत्पन्न हुआ ॥ सू० १६ ॥ તેમણે અનશન દ્વારા ૩૦ ભક્તોનું છેદન કર્યુ. ત્રીસ ટકના ભાજનને રિत्याग ४र्यो, ' छेद्देत्ता तहत ठाणस्त्र अणालोइयपक्कि ते कालमासे काल किच्चा लतए कप्पे जात्र उत्रवन्ने ” आ रीते 30 टंडना लोनी परित्याग १२वा છતાં પયુ તેમણે પેાતાનાં પાપસ્થાનકની આલેચના પણ ન કરી અને પ્રતિક્રમણ ( પ્રાયશ્ચિત્ત) પશુ ન કર્યું. આ રીતે પાપસ્થતકાની આલેાચના અને પ્રતિક્રમણ કર્યાં વિના કાળના અવસર આવતા કાળ કરીને તે લાન્તક કલ્પમાં ૧૩ સાગરાપમની સ્થિતિવાળા કિવિષિક દેવેમાં કવિષિક ધ્રુવ રૂપે ઉત્પન્ન થયા છે. ! સૂ. ૧૬ ૫
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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