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________________ प्रमेययन्द्रिका टीका श०९ ४०३३ सू०१६ देवकिल्यिपिकभेदनिरूपणम् ६२५ परिवसन्ति, गौतमः पृच्छति - ' कहि णं भंते । तिसागरोवमट्टिया देनकिन्धिसिया परिवसंति ? ' हे भदन्त ! कुत्र खल त्रिसागरोपमस्थितिकाः त्रिसागरोपमा स्थितिर्येषां ते त्रिसागरोपमस्थितिकाः देवकिल्विषिकाः परिवसन्ति | भगवानाह - ' गोयभा ! उपि सोहम्मीसागाणं कप्पाणं हिहिं सणकुमारमादिदेसु कप्पेस, एत्थ णं तिसागरोचमडिया देवकिव्त्रिसिया परिवसंति - हे गौतम ! उपरिसौधर्मेशानयोः कल्पयोः, सौधर्मेशानकल्पाभ्यामूर्ध्वं सनत्कुमारमाहेन्द्रयोः कल्पयोः अधस्तात्, अन खलु स्थाने त्रिसागरोपमस्थितिकाः देवकिल्विपिकाः परिवसन्ति ।' कहिण अंते । तेरससागरोवमट्टिया देवकिन्विसिया परिवरांति ? ' हे भदन्त ! कुत्र खलु त्रयोदश सागरोपमस्थितिकाः त्रयोदशसागरोपमा स्थितियेषां ते त्रयोदशसागरोपमस्थितिकाः देवकिल्विपिकाः परिवमन्ति ? निवसन्ति ? देवकिल्बिषक रहते है । हे भदन्त । जिन किल्थिपिक देवकी स्थिति तीन सागरोपमकी है-वे किल्मिपिक देव कहां रहते हैं इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ' गोयला' हे गौतम !' उधि सोहम्मीसाणाणं कप्पाणं, हिडिं सणकुमारमादेिसु कप्पेसु एत्थ णं तिसागरोचमहिया देवकिव्विसिया परिवति ' सौधर्म ईशान इन दो देवलोकोंके ऊपर एवं सनत्कुमार माहेन्द्र इन दो देवलोकोंसे नीचे ये तीन सागरोपमकी स्थितिवाले देवकिल्विपिक रहते हैं । अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'हे भदन्त 1 'तेरससागरोवमहिया देवकिल्विसिगा देवकिल्विसिया कहिं परिवति' जिन किल्यिपिक देवकी स्थिति १३ सागरोपमकी है वे किल्वि पिक देव कहां पर रहते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोपमा ' Joy गौतम स्वाभीना प्रश्न - " कहि णं भंते तिसागरोमट्ठिया देवकिव्विसिया परिवसति ? " हे लहन्त । श्रधु सागरोपमनी स्थितिपाणा मिस्थिपित हो કર્યાં રહે છે? भ: वीर असुन उत्तर " गोयमा ! " हे गीतभ ! " उनि सोम्मी सागाणं कप्पाण, हिट्टि सण कुमारमादि देसु कप्पे पश्थ णं तिसागरोषमद्विश्या देवकिव्विसिया परिवमति " ते भलु गगरोपनी स्थितिपाणा द्विविपि देवा સૌધમ અને ઇશાન, એ બે કલ્પાની ઉપર તથા સનન્દ્વમાર અને માહેન્દ્ર કલ્પાની નીચે વસે છે गीतभ स्वाभीना प्रश्न - " तेरम सागरोयमट्टियां देवकिच्चिखिया कि परिषसंति ? " हे सहन्त । ते सामशयमनी स्थितित्राणा विविपि देवो કયાં રહે છે?
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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