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________________ trafarstar श०९७०३३०४ जमालिवक्तव्य निरूपणम् કરવું भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छर अञ्ज चिमुकुलितहस्तः कृताञ्जलिः, यंत्रव समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करे - उपागत्य श्रमणं भगः वन्तं महावीरं त्रिःकृत्वः त्रिवारम् आदक्षिणप्रदक्षिणं करोति करिता जाव ति : विहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासह ' कृत्वा यावत् शुश्रूषमाणो नमस्यन् विनयेन : सन् त्रिविधया पर्युपासनया पर्युपास्ते । तए णं समणे भगवं महा बीरे जमालिस खत्तियकुमारस्स वीसेय महतिमहालियाए इसि, जाव धम्मकहा जात्र परिसा पडिगया' ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरो, जमाल क्षत्रियकुमाराय तस्यां च महतिमहत्याम् ऋषियावत् पर्षदि धर्मकथा यावत उपदिष्टवान + M म लिहत्थे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छ ' फिर वह दोनों हाथों की अंजलि बना कर जहां श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे वहां आया ' उवागच्छित्ता समण भगवं महावीरं ति याहिणपयाहिणं करेह' वहां आ करके उसने श्रमण भगः चान् महावीरको तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की करिता जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासह ' तीन बार आदक्षिण - प्रदक्षिण करके धर्मश्रवण करने की इच्छासे फिर उसने प्रभुको नमस्कार किया और बड़े विनयसे दोनों हाथों को जोड़कर त्रिविध पर्युपासना से प्रभुकी उसने उपासना की 'तणं समणे भगवं महावीरे जमालिसः खत्तियकुमारस्स तीसेय महति महालियाए इसि जाव धम्म कहा जाव, परिसा पडिगया' इसके बाद उन श्रमण भगवान् महावीरने उस क्षत्रियकुमार जमालिको और उस विशाल ऋषि परिषद आदिको धर्मकथा कही. धर्मकथाको सुनकर " t " समणे भगवं महावीरे तेणेत्र उत्रागच्छछ ” भन्ने हाथनी मंसी, मनावीन ( બન્ને હાથ જોડીને) જ્યાં શ્રમણુ ભગવાન મહાવીર વિરાજતા હતા, ત્યાં ते भाव्या. “ उवागच्छित्तो ” त्यां खावीने “ समर्ण भगवं महावीर तिक्खुत्तो श्रायाद्दिणपयाद्दिणं करेइ ” ते त्र वार, क्षिया क्षणापूर्व ४- श्रमष भगवान भडावीरने वढया नमस्कार या “ करिता जाव तिविहाए, पज्जुवास. णाए पज्जुवासइ ” व‘दृथा नमस्कार उरीने तेथे धर्म श्रवणुनी छाथी, मन्ने हाथ लेडीने त्रिविधू (भनं, वयन सुने छाया ) पर्युपासना द्वारा अलुनी ઉપાસના કરી. " 13 66 " P ! t "तरणं समणं भगवे - महावीरे जमालिस) खत्तियकुमारस्म तीसे य महविमहालियाए इनि जाव धम्म कहा जान परिसा पडिगया ? त्या त्याह श्रम ભગવાન મહાવીરે તે ક્ષત્રિયકુમાર જમાલીને તથા તે વિશાળ ઋષિપરિષદા
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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