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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०९ उ० ३२ सू० १५ मनुष्यप्रवेशनकनिरूपणम् २८१ होज्जा ' अथवा असंख्पेया मनुष्याः संमूच्छिपमनुष्येषु भवन्ति, एको मनुष्यो गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येषु भवति, “ अहवा असं खेज्जा संगुच्छिममणुस्सेसु, दो गभवक्कैतियमणुर सेसु होज्जा ' अथवा असंख्येयाः असंख्याताः मनुष्याः मनुष्य प्रवेशनकेन प्रविशन्तः संमूच्छिममनुव्येषु भवन्ति, द्वौ मनुष्यो गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येषु भवतः ‘एवं जाव असंखेज्जा संमुन्छिसमणुस्सेसु होज्जा, संखेज्जा गम्भवतियमणुस्सेसु वा होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् असख्याताः मनुष्याः मनुष्यपवेशनकेन प्रविशन्तः समूच्छिममनुष्येपु मान्ति, त्रयो वा, चत्वारो वा, पञ्च वा, पइ वा सप्त वा, अष्टौ वा, नव वा, दश वा, मनुष्या मनुष्यपवेशनकेन मनुष्यों में होते हैं (अहवा असंखेज्जा संमुच्छिममणुस्सेसु एगे गन्भवकंतिघमणुरुलेतु होज्जा) अथवा असंख्यात मनुष्य संमूच्छिममनुष्यों में होते हैं, तथा एक मनुष्य गर्भज मनुष्यों में होता है " अहवा असंखेज्जा संमुच्छिममणुस्सेतु दो गभ चक्कंतियमणुस्तेसु होज्जा) अथवा असंख्यान मनुष्य संमूच्छिम मनुष्यों में होते हैं और एक मनुष्य गर्भज मनुष्यों में होता है । ( अहवा-अस खेज्जा समुच्छिममगुस्सेसु दो गम्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा) अथवा असंख्यात मनुष्य मनुष्यप्रवेशनक द्वारा मनुष्यभव में प्रवेश करते हुए संमूच्छिममनुष्यों में होते हैं और उनमें से दो मनुष्य गर्भजमनुष्यों में होते हैं। (एवं जाव अस खेज जा समुच्छिममणुस्सेस्तु होज्जा, स खेज्जा गभवक्कंतियमणुस्सेतु होज्जा) इस पूर्वोक्त रीति के अनुसार यावत् अस ख्यात मनुष्य मनुष्यप्रवेशनक द्वारा मनुष्यभव में प्रवेश करते हुए समुच्छिममनुष्यों में होते हैं और तीन, अथवा चार, पांच, छह, सात आठ, नौ, अथवा दश मनुष्य मनुष्यप्रवेशनक द्वारा मनुष्यभव में प्रवेश करते Gur. थाय छ, “ अहवा अस खेज्जा समुच्छिममणुस्सेसु एगे गमवक तियमणुस्सेसु होज्जा” अथवा मस-यात मनुष्य स भूरिछम भनुध्यामा पन्न थाय छे तथा से मनुष्य 1. मनुष्यामा पन्त थाय छे. “ अहवा अंसखेज्जा समुच्छिममणु सेसु, दो गन्भवतियमणुस्सेसु होज्जा" मथ અસંખ્યાત મનુષ્ય સ મૂછિમ મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન થાય છે અને બે મનુષ્ય मी मनुष्योमा उत्पन्न थाय छ " एव जाव अस खेज्जा समुच्छिममणुस्सेस होज्जा, स खेज्जा गभवतियमणुस्सेसु होज्जा" या शत माग ] थन वं જોઈએ. જેમક...મનુષ્ય પ્રવેશનક દ્વારા મનુષ્ય ભવમાં પ્રવેશ કરતા અસંખ્યાત મનુષ્યો સંસૃષ્ઠિમ મનુષ્યોમાં ઉત્પન્ન થાય છે અને બાકીના ત્રણ, ચાર, પાચ,
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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