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________________ प्रमैयन्द्रिका टीका श५ ४०३२सू०१४ तिर्थयोनिकप्रवेशनकनिरूपणम् २७१ ___ अथ तिर्यग्योनिकानामेव एकेन्द्रियादितिर्यग्योनिकपवेशनकस्याल्पबहुखादिवक्तव्यतामाह-' एयस्स णं भंते !' इत्यादि ! 'एयस्म णं भंते ! एनि दियतिरिक्वजोणियपवेसणगस्म जाव पंचिंदियतिरिक्वजोणियपवेसणगस्स य कयरे कयरे हितो जाव विसे साहिया वा ? ' गाङ्गेयः पृच्छति-हे भदन्त ! एतस्य खलु एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकप्रवेशनकस्य - यावत्-द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिकमवेशनकस्य, त्रीन्द्रियतिर्यग्योनिकमवेशनकस्य, चतुरिन्द्रियतिर्यग्योनिकप्रवेशन. कस्य पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमवेशनकस्य च मध्ये कतराणि तिर्यग्योनिकमदेशनकानि कतरेभ्यरितयंग्योनिकमवेशनकेभ्यः स्तोकानि वा, बहुकानि वा, तुल्यानिवा, विशेषाधिकानि वा भवन्ति ? भगवानाह- गंगेया। सव्वत्योवा पंचिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणया, चउरिदियतिरिक्खनोणियपवेसणया, विसेसाहिया' किननेक तेइन्द्रियों में, कितनेक चौइन्द्रियों में और कितनेक पंचेन्द्रियों में होते हैं १ इस प्रकार से ४-६-४-१ मिलकर कुल १५ मंग इनके हैं अय सूत्रकार निर्ययोनिक जीवों के अल्प बहुत्व का कथन करते हैं-इसमें गांगेय ने प्रभु से ऐमा पूछा है हे भदन्त ! (एयस्स एगिदियतिरिक्खजोणियपवेसणगस जाव पंचिदियतिरिक्खजोणियपवेसणगस्स कयरे कयरेहिंतो जाव विसे साहिया वा) एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकप्रवेशनक यावत् हीन्द्रियतिर्यग्योनिकप्रवेशनक तेइन्द्रिय तिर्यग्योनिक प्रवे. शनक चौइन्द्रियतिर्यग्योनिक और पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक प्रवेशनक इनमें कौन प्रवेशनक किस प्रवेशनककी अपेक्षासे स्तोक (अल्प) हैं ? कौन किस की अपेक्षासे बहुत हैं। कौन किसकी अपेक्षासे तुल्य हैं ? कौन किस की अपेक्षा से विशेषाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रमु कहते हैं-(गंगेया) हे गांगेय ! (सव्वस्थोवा पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिघपवेसणया ) तिर्यगपंचे ___गेय सागरना प्रश्न-" एयस्स एगि दियतिरिक्खजोणियपवेसणगस्स जाव पचि दिय तिरिक्ख जोणिय रवेणगस्स इयरे कयरेहि तो जाच विसेसाहिया ? હે ભદન્ત ! એકેન્દ્રિય તિર્યચનિક પ્રવેશનથી લઈને પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ જેનિક પ્રવેશનક પર્યન્તના પાચ પ્રવેશનમાંના કયા કયા પ્રવેશનમાં કયાં પ્રવેશનકે કરતાં અ૯પજીને પ્રવેશ થતો રહે છે? કયા કયા પ્રવેશનમાં કયા કયા પ્રવેશનકો કરતા વધારે ને પ્રવેશ થતો રહે છે? કયા કયા પ્રવેશનકમાં ક્યા કયા પ્રવેશનકા જેટલા જ જીને પ્રવેશ થતો રહે છે? અને કયા કયા પ્રવેશનકોમાં કયા કયા પ્રવેશનકે કરતાં વિશેષાધિક જીને પ્રવેશ થતો રહે છે ?
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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