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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०९ ४०३२ सू० ७ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् १७६ एषां सप्तभिर्विकल्पैर्गुणने कृते सप्तचत्वारिंशदधिकैकशत ( १४७ ) भङ्गा भवन न्तीति । ' एव जाव छक्कसंजोगो य जहा सत्तण्हं भणिओ तहा अट्टण्ह वि भाणि यव्यो' एवं पूर्वोक्तिरीत्या यावत् त्रिकसंयोगः, चतुष्कसंयोग. पञ्चकसंयोगः, पट्कसंयोगश्च यथा सप्तानां नैरयिकाणां भणितस्तथा अप्टानामपि नैरयिकाणां भंणितव्यः, नवरं एक्केको अब्भहिओ संचारेयव्यो सेसं तं चेव जाव छक्कसंजोगो य' नवरं पूर्वापेक्षया विशेषस्तु अत्र एकैकोऽभ्यधिकः संचारयितव्यः 'सेसे तं. चेव जाव छक्कसंजोगस्स' शेषं तदेव पूर्ववदेव यावत्-त्रिकसंयोगस्य, चतुष्क संयोगस्य, पञ्चकसंयोगस्य, पट्कसंयोगस्य च, वक्तव्यम् , अथ पटकसंयोगे कॉश्चिद् भङ्गान् प्रदर्शयति- अहवा तिन्नि सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा' अथवा त्रयः शर्कराप्रभायाम् , एको वालुकाप्रमायाम् २१ प्रथम विकल्प में भंगों का आ जाता है २१ को सात विकल्पों से गुणा करने पर १४७ भंग द्विकसंयोग में आठ नारकों के होते हैं । ('एवं जाव छक्कसंजोगो य जहा सत्तण्हं भणिओ तहा अटुंण्ह वि.माणियन्वो) जिस प्रकार से सोत नारकों का त्रिकसंयोग, चतुष्कंसंयोग, पंचक संयोग, एवं षट्कसंयोग कहा गया है उसी प्रकार से आठ नारकों का भी यह सब संयोग कहना चाहिये (नवरं एकेको अमहिओ संचा यन्वो सेसं तं चेव जाव छक्क संजोगो य) यहां पर यदि पूर्व को अपेक्षा कुछ विशेषता है तो वह एक २ अधिक नैरपिक के संचार करने की है बाकी का और सब कथन छह संयोग तक पहिले जैसा ही है । अब सूत्रकार षटूक(६छ)संयोगमें कितनेक भंगोंको दिखाते हैं-(अहवातिन्नि सकरप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए जाव एगे अहे सत्तमाए होजा) अथवा ભંગ અને તમ.પ્રભા સાથે ૧ ભાગ થાય છે. આ રીતે પહેલા વિક૯૫ના કુલ +५+४+३+२+१=२१. मग याय छ: सवा सात दिवस या विना २१४७=१४७ दुसरा विस या थाय छे. . ! “एव जाव छक संजोगो य जहा सत्तण्ह भणिओ तहा अण्ह वि भाणियन्वो" सात नाना मा8 नाना सियो, यत स यो१, ५५४सया! मने पस या पY समय. " नवर एकेको अभहिओ सचारेयव्वो सेस तं चेव जाव छक्कसजोगो य" सात ना ना ४थन ४२di આઠ નારકેન કથનમાં એટલી જ વિશેષતા છે કે અહીં એક, એક અધિક નારકને સંચાર કરવો જોઈએ. બાકીના છ સાગ પર્યન્તનું સમસ્ત કથન પહેલાના કથન પ્રમાણે જ સમજવું ? ”
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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