SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका डी०० ९ उ०३१ सू०४ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् पङ्कमभायाम्, एको धूमप्रभायाम्, एकस्तमः प्रभायां भवति १६, ' अहवा एगे सक्करपभाए, जाव एगे पंकप्पभाए, एगे धूमष्पभाए, एगे असत्तमाए होज्जा' १७' अथवा एकः शर्कराममायाम्, यावत्-एको वालुकाममायाम्, एकः पङ्कप्रभायाम्, एको धूममभायाम्, एकोऽधः सप्तस्यां भवति १७, 'अवा एगे सक्करप्पभाए जाव एगे पंकष्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा १८ ' अथवा एक' शर्कराप्रभायाम्, यावत् - एको वालुकाममायाम् एकः पङ्कमभायाम्, एकस्तमः प्रभायाम्, एकः सप्तम्यां भवति १८, 'अहवा एगे सक्करपभाए, एगे वाल भाए, एगे धूमपभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए, होज्जा १९ ' अथवा एगे सकरप्पभाए, एगे वालुवप्पभाए, जाव एगे लमाए होज्जा) अथवा एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में यावत्-एक नारक पकप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है १६, ( अहवा एगे सकरप्पभाए, जाव एगे पंक भाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा ) अथवा - एक नारक शर्कराप्रभा में, यावत् - एक नारक वालुकाप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में, और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है १७, ( अहवा एगे सकरप्पभाए, जाव एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा ) अथवा एक नारक शर्करामभा में, यावत् - एक नारक वालुकाप्रभा में, - एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है १८, ( अहवा एगे सकरप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमपभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा ) अथवा - एक नारक (१६) अथवा मे " થાય एगे सक्कर भाप, एगे वालुभाए, जाव एगे तमाए होज्जा નારક શરાપ્રભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં, એક નારક નારક ધૂમપ્રભામાં અને એક નારક તમઃ પ્રભામાં ઉત્પન્ન एगे सक्कर पभाप, जाव एगे पंकप्पा, एगे धूमप्पमा, एगे होज्जा " (१७) अथवा शेड नार४ शशलामां, भेड नार वायुप्रप्रलाभां, એક નારક પકપ્રભામાં, એક નારક ધૂમપ્રભામાં અને એક નારક નીચે સાતમી नरम्भां उत्पन्न थाय छे. " अहवा एगे सक्करप्पभाष, जाव एगे पकप्पभाए, एगे तमाप, पगे अहे सत्तमाप होज्जा ” (१८) अथवा मे! ना२४ शशપ્રભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં, એક નારક પકપ્રભામાં, એક નારક તમઃપ્રભામાં અને એક નારક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે વ अहवा सक्करपभाप, पगे वालुयप्पभाए, पगे धूमप्पभाप, पगे तमाए, एगे अहे समाए होज्जा " (१८) अथवा मे नार शशलामा, भे ना२९ वासु પંકપ્રભામાં, એક છે. “ अहवा अहे सत्तमा प
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy