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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श०९ उ० ३२ सु०३ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् ९१ एको रत्नप्रभायाम्, एको वालुकापभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् , एको धूमप्रभायां भवति ११ । ' अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकाप्रभायाम् , एकः पङ्कपभायाम् , एकस्तमायाम् भवति १२। 'अहवा एगे रयण्णप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकामभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् , एकोऽधःसप्तम्यां भवति१३। 'अहवा एगे रयगप्पभाए, एगे वालुयप्प माए, एगे धूमप्पभाए एगे तमाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकाममायाम् ,एको धूममभायाम् ,एकस्तमायां भवति १४! ' अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकाप्रभायाम् , एको होज्जा) अथवा-एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वालका प्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में और एक नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है ११, (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वोलुकाप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है १२, (अहवा-एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा-एक नारक रत्नप्रभामें, एक नारक वालुकाप्रभामें, एक नारक पंकप्रभामें और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है १३, (अहवा-एगे रयणप्पभाए, एगे चालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा) अथवा-एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है १४, (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पप्रभामा भने मे धूमप्रमामा उत्पन्न थाय छे “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पकप्पभाए, एगे तमाए होज्जा” (१२) -Aथा से રત્નપ્રભામાં, એક વાલુકાપ્રભામાં, એક પંકપ્રભામાં અને એક તમ પ્રભામાં उत्पन्न थाय छे. " अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (13) अथवा मे २त्नमामा, मे पा . પ્રભામાં, એક પકpભામાં અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा'(१४) અથવા એક રતનપ્રભામાં એક વાલુકાપ્રમામાં, એક ધૂમપ્રભામાં ને એકતમપ્રભામાં S4-1 थाय छे. " अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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