SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ०८ सू०४ सांपराधिक कर्मबन्धस्वरूपनिरूपणम् उ पुरुषो वध्नाति तथैव यावत् नोस्त्रीनो पुरुषनोनपुंसको बध्नाति ? गौतम ! स्त्री अपि नाति, पुरुषोऽपि बध्नाति यावत् नपुंसकोऽपि बध्नाति अथवा एते च अपगवेदश्च बध्नाति, अथवा एते च अपगतवेदाश्च बध्नन्ति । यदि भदन्त । अपरातवेदथ " विड़, देवी विधड़ ) नारक जीव भी सांपराधिक कर्म को बांधता तिच भी बांधता है ? तिच स्त्री भी बांधती है, मनुष्य भी घांधता है, मनुष्य स्त्री भी बांधती है, देव भी बांधता है और देवी भी बांधती हैं । (तं भंते । किं इत्थी बंधट, पुरिसो वध तब जाव नोइवी, नोपुरिसोनपुंसओ बंध ) हे भदन्त | सपरायिक कर्म को क्या स्त्री बांधती है ? पुरुष बधिता है? इसी तरह से क्या यावत् नो स्त्री, नो पुरुष और नो नपुंसकता है ? ( गोयमा ) हे गौतम । ( इत्थी विवध पुरसो विबंध, जाच नपुंसगो विबंध ) सॉपराधिक कर्म को स्त्री भीती है, पुरुष भी बांधता है, यावत् नपुंसक भी यांधता है । ( अहए य अवगय वेदोय वधइ ) अथवा ये और वेद रहित स्त्री वगैरह एक जीव भी बांधता है, ( अहवेए य अवगयवेया य पंधति) अथवा-ये और वेदरहित अनेक जीव भी बांधते हैं । (जड़ भंते ! अवयवेयो य वध, अवगयवेया य बंधंति, तं ते । किं इत्थी पच्छाकडो યિક ક નારક જીવ પણ ખાંધે છે, તિર્યંચ પણ ખાધે છે, તિય ચિણી પણ ખાધે છે, મનુષ્ય પણ ખાધે છે, મનુષ્ય સ્ત્રી પણ ખાંધે છે, દેવ પણ ખાધે છે अने हेवी पशु माघे छे. ( तं भते । कि इत्थी व धइ, पुरिसो व धइ, तहेव जाव नो इत्थी नो पुरिसनो नपुंसओ व धइ ) हे लहन्त । सांयरायि શું સ્ત્રી ખાધે છે? શુ પુરુષ માધેછે? એજ પ્રમાણે શું ના સ્ત્રી, ના પુરુષ કે ને નપુ ́સક બાંધે છે?” ત્યાં સુધીના પૂર્વોક્ત પ્રશ્નો અહીં પણ ગ્રહણ કરવા. गोमा ) हे गोतम ! (इत्थी वि बधइ, पुरिसो वि बंधइ, जाव नपुं. અને सगो विबधइ) सांपरायि उर्भ स्त्री पशु मांघे छे, पुरुष या धेछे, नपुंसकु पर्यन्तना ७१ पशु जांघे छे. ( अहवेएय अवगयवेदो य पंधइ ) અથવા ઉપર્યુક્ત વેઢસહિત જીવા તથા વેશ્વરહિત સ્ત્રી વગેરે એક જીવ પણ गांधे छे. ( अहवेए य अवगयवेया य बंधति) अथवा वेदसहित वो तथा વેશ્વરહિત અનેક જીવે પણ ખાંધે છે. अर्भ { ( जइ भंते! अवगयवेयो य ब धइ, अवयवेया य बंधति, त भंते ! कि इच्छाको बंध, पुरिस पठाकडो व धइ० १ ) से लहन्त ! ले गया सांप
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy