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________________ ૭૬૨ भगवतीने संहरणं प्रतीत्य अर्धत्तीयद्वीपसमुद्रतदेकदेशभागे भवति-इति भावः । गौतमः पृच्छति-'ते णं भंते ! एगसमएणं केवड्या होज्जा ? ' हे भदन्त ! ते खलु श्रुत्वा समुत्पन्नकेवलज्ञानाः एकसमयेन कियन्तो भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा! जहण्णेणं एकको वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं अट्ठसयं १०८ ' हे गौतम ! जघन्येन एकसमये एको वा, द्वौ वा त्रयो वा भवन्ति, उत्कृष्टेन अष्टोत्तरशतम् भवति । तदपसंहरति-से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-सोचाणं केवलिस्स वा जाव केवलिउवासियाए वा जाव अत्थेगडए केवलनाणं उप्पाढेज्जा' हे गौतम ! तत् तेनार्थेन एवम् उच्यते-श्रुत्वा खलु केवलिनो वा सकाशात् यावत्-केवलिमें होता है। तिर्यगू लोक में वह पन्द्रह कर्मभूमियों में होता है और संहरण की अपेक्षा से वह अढाई द्वीप और अढाई द्वीपान्तर्गत दो समुद्रों के किसी एक भाग में होता है। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(ते णं भंते ! एगसमएणं केवइया होजा) श्रुत्वा समुत्पन्न केवलज्ञानी एक समय में कितने तक हो सकते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं एको बा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं अट्ठसयं) श्रुत्वा समुत्पन्न केवलज्ञानी एक समय में कम से कम एक, या दो, या तीन तक हो सकते हैं और अधिक से अधिक एक सौ आठ १०८ तक हो सकते हैं। (से तेणद्वेणं गोयमा! एवं बुच्चइ, सोच्चाणं केवलिस्स वा जाव केवलि उवासियाए वा जाव अत्थेगइए केवलनाणं उप्पाडेज्जा) इस कारण हे गौतम ! मैने ऐसा कहा है कि कोई एक जीव केवली से यावत् केवली અથવા ભવનમાં હોય છે. તિર્યકમાં તે ૧૫ કર્મભૂમિમાં હોય છે અને સંહરણની અપેક્ષાએ તે અઢી દ્વીપમાં અને અઢી દ્વીપમાંના બે સમુદ્રોના કેઈ એક ભાગમાં હોય છે. गौतम स्वामी प्रश्न-( से ण' भंते ! एग समएण केवइया होज्जा १) હે ભદન્ત ! કૃત્વા સમુત્પન્ન કેવલજ્ઞાની એક સમયમાં કેટલા થઈ શકે છે? महावीर प्रभुना उत्त२-( गोयमा ! जहण्णेण एको वा, दो वा, तिन्नि वा उक्कोसेण अदुसयं) हे गौतम ! मे समयमा मछि मां मछ। २४ मथवा બે અથવા ત્રણ કૂવા સમુત્પન્ન કેવલી થઈ શકે છે અને વધારેમાં વધારે ૧૦૮ સુધી થઈ શકે છે. ( से तेणटेणे गोयमा ! एवं वुच्चइ, सोच्चाणं केवलिस वा जाव केवलि उवासियाए वा जाव अत्थेगइए केवलनाण' उप्पारेन्जा) 3 गौतम ! ४२
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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