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________________ ७६० भगवनीसूत्रे परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति ? भगवानाह-'हंता सिझंति, जाव अंतं करेंति' हे गौतम ! तस्य शिष्या अपि हन्त सत्यं सिध्यन्ति यावत्-बुध्यन्ते, मुच्यन्ते, सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति च । गौतमः पृच्छति'तस्स ण भंते! पसिस्सा वि सिज्झति जाव अंतं करेंति ? ' हे भदन्त ! तस्य केवलज्ञानिनः प्रशिष्या अपि किम् सिध्यन्ति यावत् युध्यन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदु खानामन्तं कुर्वन्ति? भगवानाह -'एवं चेव जाव अंतं करेंति' हे गौतम! एवमेव पूर्वोक्तरीत्यैव यावत् तस्य प्रशिष्या अपि सिध्यन्ति बुध्यन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति चेति । गौतमः पदों का ग्रहण हुआ है "सर्वदुःखानाम्" इस पद तक। उत्तर में प्रभु कहते हैं-(हंता, सिझंति जाब अंतं करेंति ) हां, गौतम ! उस श्रुत्वा केवलज्ञानी के शिष्य भी सिद्ध होते हैं, यावत् समस्त दुःखों का अंत करते हैं । (तस्स णं भंते ! पमिस्सा वि सिझंति जाव अंत करे ति) हे भदन्त ! उस अल्वा केवली के क्या प्रशिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं ? यहां पर भी यावत् पद से पूर्वोक्त “सिझंति" आदि क्रिया पदों का " सर्वदुःखानाम् " पद तक ग्रहण किया गया है। उत्तर में प्रभु कहते हैं-(एवं चेव, जाव अंतं करे ति) हे गौतम! पूर्वोक्तरीति के अनुसार यावत् उसके प्रशिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । यहाँ पर भी (यावत्) पद से "बुध्यंते, मुच्यन्ते, परिनिर्वान्ति, सर्वदु खानाम् " इन पदों का ग्रहण हुआ है। (बुध्यते, मुच्यते, परिनिर्वाति सर्वदुःखानाम् ) मा यिापहोने यह ४२कामा माया छे. महावीर प्रसुने। उत्त२– (हता, सिझंति, जाव अंत करे ति ) , ગૌતમ ! તે થવા કેલીના શિષ્યો પણ સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે, મુક્ત થાય છે, સમસ્ત કર્મોનો ક્ષય કરે છે અને સમસ્ત દુઃખાને અ ત કરે છે गौतम स्वामीना प्रश्न-( तस्स गं भंठे ! पहिस्सा वि सिझ ति जाव अंत करे ति ) 3 महन्त ! तमना प्रशिष्यो ५y शुं सिद्ध थाय छ, मुद्ध થાય છે, મુક્ત થાય છે, સમસ્ત પરિતાપથી રહિત થાય છે અને સમસ્ત દુઃખને અંત કરે છે ? महावीर प्रभुन। त२-( एवं चेत्र जाव अत' करे दि १) गौतम ! શ્રવા કેવલીના શિષ્યોની જેમ પ્રશિષે પણ સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે, મુક્ત થાય છે, સમસ્ત પરિતાપથી રાહત થાય છે અને સમસ્ત દુખોને અંત કરી નાખે છે.
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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