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________________ प्रचन्द्रिका टी००९९०३१ सू०६ मुस्याप्रतिपन्नावधिज्ञानिनिरूपणम् ७५१ सद्भावात् जन्मनपुंसकोsवधिज्ञानी न भवतीति भावः । गौतमः पृच्छति - से णं ते ! किं सकसाई होज्जा, अकसाई वा होज्जा ? ' हे भदन्त ! स खलु अधिकृतावविज्ञानी कि सकपायी भवेत् ? किं वा अकपायी भवेत् ? भगवानाह - 'गोयमा । सकसाई वा होज्जा, अकसाई वा होज्जा' हे गौतम | अधिकृतावधिज्ञानी सकपायी वा भवेद, अकपायी वा भवेत्, तत्र यः कपायाक्षये सति अवधिज्ञानं लभते स सकपायो सन् अवधिज्ञानी भवेत्, अथ च यस्तु कपायक्षयेसति अवधिज्ञानं लभते असौ अरुपायी अवधिज्ञानी भवेदिति भावः । गौतमः पृच्छतिज कसाई होज्जा किं उवसंतकसाई होज्जा, खीणकसाई होज्जा ? ' हे को और पुरूषनपुंसकत्व के अनुभव के सद्भाव को लेकर कहा गया जानना चाहिये । " अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( से णं भंते । किं सकसाई होज्जा, अकसाई वा होज्जा ) हे भदन्त ! वह अधिकृत अवधिज्ञानी मनुष्य क्या सकषायी होता है या अकषायी होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा ! सकसाई वा होज्जा अकसाई वा होज्जा) हे गौतम! वह उत्पन्न अवधिज्ञानी मनुष्य सकषायी भी होता है और अकषायी भी होता है । जो अधिकृत अवधिज्ञानी कषाय के अक्षय में अवधिज्ञान को प्राप्त करता है वह सकषायी अवधिज्ञानी कहा जाना है और जो कषाय के क्षय में अवधिज्ञान को प्राप्त करता है वह अकषायी अवधिज्ञानी कहा जाता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( जइ अकसाई होज्जा किं उबसंत कमाई होज्जा, खीणकसाई होज्जा ) हे भदन्त ! उत्पन्न अवधिज्ञानी गौतम स्वाभीने अश्न - ( से णं भंते ! कि सकसाई होज्जा, अकसाई होज्जा ? ) लहन्त! ते अधिकृत अवधिज्ञानी मनुष्य शुं सम्षायी होय छे કે અકષાયી હાય છે ? महावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा !” हे गौतम ! ( सकसाई वा होन्जा, अकसाई वा होज्जा ) ते उत्पन्न अवधिज्ञानी मनुष्य उषाययुक्त पशु होय छे અને કષાયરહિત પણુ હાય છે, જે અધિકૃત અવધિજ્ઞાની કષાયના અક્ષયની અવસ્થામાં અવધિજ્ઞાન પ્રાપ્ત કરે છે, તે મનુષ્યને સકષાયી અવિધજ્ઞાની કહે છે અને જે મનુષ્ય કષાયના ક્ષયની અવસ્થામાં અવધિજ્ઞાન પ્રાપ્ત કરે છે, તે મનુષ્યને અકષાયી અવધિજ્ઞાની કહે છે. गौतम स्वाभीना अश्न - ( जइ अकसाई होन्जा, किं उवसतकसाई होज्जा, स्त्रीणकखाई होक्जा 6 ) हे भहन्त ! उत्पन्न अवधिज्ञानी मनुष्य ले सम्षायी
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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