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________________ ADDED ६९० भगवतीय काषायेषु भवति ? गौतम ! चतुषु संज्वलनक्रोध-मान-मायालोभेषु भवति । तस्य खलु भदन्त ! कियन्ति अध्यवसानानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! असंख्येयानि अध्यवसानानि प्रज्ञप्तानि, तानि खलु भदन्त ! प्रशस्तानि ? अप्रशस्तानि ? गौतम ! प्रशस्तानि, नो अप्रशस्तानि । स खलु गौतम ! तैः प्रशस्तैः अध्यवसानः वर्तमानः अनन्तेभ्यो नैरयिकभवग्रहणेभ्य आत्मानं विसंयोजयति. अनन्तेभ्यस्तिर्यग्योसकषायी होता है, अपायी नहीं होना है । ( जइ सकमाई होज्जा कइसु कसाएलु होज्जा) हे भदन्त ! वह अवधिज्ञानी यदि सकषापी होता है तो कितनी कषायों में होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (चउसु संजलणकोहमाणमाया लोभेसु होज्जा) वह अवधिज्ञानी संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ इन चार कषायों में होता है । (तस्स णं अंते ! केवइया अज्झवसाणा पन्नत्ता) हे भदन्त ! उस अवधिज्ञानी के कितने अध्यवसाय कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! उस अवधिज्ञानी के (असंखेज्जा अज्झवसाणा पण्णत्ता) असंख्यात अध्यवलाय कहे गये हैं। (ते णं भंते ! किं पसत्था अप्पसत्था) हे भदन्त ! वे उसके असंख्यात अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं या अप्रशस्त होते हैं । (गोयमा) हे गौतम ! (पसत्था नो अप्पसत्था ) वे उसके अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं, अप्रशस्त नहीं होते हैं। (से णं गोयमा तेहिं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं वमाणेहिं अर्थतेहितो नेरइय भवग्गहणेहिंतो अप्पाणं विसंजोएइ) हे गौतम! वह अवधिज्ञानी जीव उन वर्तमान अध्यवसायों द्वारा अनन्तनथी. ( जइ सकसाई होज्जा कइसु कसाएसु होज्जा ? ) 3 महन्त ! न ते मधिज्ञानी सपायी डाय छ, त टसा पायवाणा हाय छ १ (गोयमा) चउसु संजलणकोहमाणमायालोमेसु होज्जा) गौतम ! ते भवधिज्ञानीमा સંજવલન કોધ, માન, માયા અને લેભ, આ ચાર કષાને સદ્દભાવ હેય छ. ( तस्स णं भंते ! केवइयो अज्झवसाणा पण्णता ? ) 3 महन्त ! ते मधि लिन Real अध्यवसाय ४i छ ? ( गोयमा !) गीतम! त अवधिज्ञानीन ( अस खेज्जा अन्झवसाणा पण्णत्ता) मसच्या मध्यवसाय ४ii छ ? ( ते ण भंते ! कि पसत्था अप्पसत्था) B महन्त! तनाते अस यात मध्य. १साय प्रशस्त डाय छ मप्रशस्त हाय छ १ ( गोयमा ! पसत्था, नो अप्पसत्था હે ગૌતમ ! તેના તે અધ્યવસાયે પ્રશસ્ત જ હોય છે, અપ્રશસ્ત હોતા નથી. (से ण गोयमा ! तेहि पसत्थेहि अन्झवसाणेहि वहमाणेहि अण तेहि नो नेरइय भवग्गहणेहिंतो अप्पाण विसजोएइ) गौतम ! ते भवधिज्ञानी ते
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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