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________________ ૭૨ भगवतोसूत्रे ज्ञानावरणीयकर्मक्षयोपशमस्थाने श्रुतज्ञानावरणीयानां कर्मणाम् क्षयोपशमो भणितव्यः । एवं चेव केवलं ओहिनाणं माणियवं' एवमेव मतिज्ञानादिवदेव केवलम् अधिज्ञानमपि भणितव्यम्, किन्तु 'नवरं ओहिणाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवस मे भाणियत्वे 'नवरं मतिज्ञानाद्यपेक्षया अवधिज्ञानस्य विशेषस्तु अवधिज्ञानावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमः भणितव्यः । एवं केवलं मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या केवलं मनःपर्यवज्ञानमुत्पादयेत् किन्तु 'नवरं मणपज्जवणाणावरणिज्जाणं कम्माणं खोवसमे भाणि यव्धे' नवर विशेषस्तु मन:पर्यत्रज्ञानावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमो भणितव्यः । गौतमः पृच्छति-'असोक्षयोपशम का है-अर्थात् आभिलिबोधिकज्ञान की वक्तव्यता में जिस प्रकार से आभिनियोधिक ज्ञान की उत्पत्ति का कारण आभिनियोधिक ज्ञानाबरणीय कर्मों का क्षयोपशम कहा गया है उसी प्रकार से यहां पर आभिनियोधिक ज्ञानावरणीय कर्मक्षयोपशम के स्थान में श्रुतज्ञानावरणीय कर्मो का क्षयोपशम कहना चाहिये । ( एवं चेव केवलं ओहिनाणं भाणियव्वं ) मतिज्ञान आदि की तरह से ही केवल अवधिज्ञान को भी कहना चाहिये (नवरं) किन्तु (ओहिनाणावरणिज्जाणं कम्मा णं खोवसमे भाणियब्वे) भतिज्ञान आदि की अपेक्षा अवधिज्ञान की उत्पत्ति में अवधिज्ञानावरणीयकर्मों का क्षयोपशम होना है ऐला जानना चाहिये । ( एवं केवलं मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा) इसी तरह से केवल मनः पर्यघज्ञान की उत्पत्ति के विषय में भी जानना चाहिये । (नवरं) पूर्व की अपेक्षा इसकी उत्पत्ति में जो विशेषता है वह मनः पर्यवज्ञानावरणीय कर्मों के क्षयोपशम को लेकर के है, अर्थात् આભિનિધિક જ્ઞાનાવરણીય કર્મોનો ક્ષોપશમ કહેવામાં આવેલ છે, એજ પ્રમાણે શ્રતજ્ઞાનાવરણીય કર્મોને ક્ષયપશમ થવાથી શ્રુતજ્ઞાન ઉત્પન્ન થાય છે, એમ સમજવું. (एवं चेव केवल' ओहिनाण' भाणियध्वं) मतिज्ञानना २वी मवधि. ज्ञाननी ५ वतव्यता समवी. “ नवर" ५२न्तु (ओहिनाणावरणिज्जाण कम्माण खोवसमे भाणियव्वे ) महा मेसी विशेषता समनवानी छ ? અવધિજ્ઞાનાવરણીય કમને ક્ષયોપશમ થવાથી અવધિજ્ઞાન ઉત્પન્ન થાય છે. (एवं केवल मणपज्जवनाण' उप्पाडेजा ) श्री प्रभारी मन५५ज्ञाननी त्य. तिना विषयमा पY 4zतव्यता समरवी. “ नबर'" ५२-तु मडी मेटली on વિશેષતા સમજવી જોઈએ કે મન:પર્યયજ્ઞાનાવરણીય કર્મોને ક્ષોપશમ થવાથી મનપર્યયજ્ઞાન ઉત્પન્ન થાય છે.
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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