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________________ भगवती सूत्रे धर्मान्तरायिकाणि तेषां वीर्यान्तरायचारित्रमोहनी यभेदात्मकानामित्यर्थः क्षयोपशमः कृतो भवति, स खलु जीवः केवलिनः सकाशाद् वा यावत् केवलिश्रावकप्रभृतेः सकाशाद् वा पत्रज्योपदेशमश्रुत्वापि खन्द्र मुण्डो भूत्वा अगारात् अनगारिताम् प्रव्रजेत्, अथ च ' जस्स णं धम्मंतरायाणं कम्माणं खभोवसमे नो कडे भवड़, सेणं असोच्चा केवलिस्स वा जाव मुंढे भवित्ता जाव णो पव्वज्जा' यस्य खलु जीवस्य धर्मान्तरायिकाणां कर्मणां क्षयोपशमो नो कृतो भवति, स खलु जीवः केवलिनो वा सकाशात यावत् केवलिश्रावभृव सकाशात् प्रत्रज्योपदेशमश्रुत्वा मुण्डो भूत्वा यावत् अगारात् अनगारितां नो मत्रजेत् । तन्निगमयन्नाह - सेट्टेणं गोयमा ! जावनो पव्वज्जा' हे गौतम | छत् तेनार्थेन यावत्पशम किया हुआ होता है-अर्थात् जिस जीव के चारित्र धारण करने मैं विघ्नकारक वीर्यान्तराय और चारित्रमोहनीय कर्मों का क्षयोपशम होता है - ऐसा जीव केवली से या यावत् केवली के आवक आदि से प्रव्रज्या का उपदेश विना सुने भी सुण्डित होकर गृहस्थावस्था के परित्यागपूर्वक अनगारावस्था को धारण कर सकता है। तथा - ( जस्स णं धम्मंतरायाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ-से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव मुंडे भवित्ता जाव णो पवएज्जा ) जिस जीव के चारित्र धारण करने में वीर्यान्तराय और चारित्रमोहनीय का क्षयोपशम किया हुआ नहीं होता है-ऐसा जीव के केवली से या यावत् उनके श्रावक आदि से प्रव्रज्या धारण करने का जबतक उपदेश नहीं सुनता तब तक वह मुण्डित होकर गृहस्थावस्था के परित्याग से अनगारावस्था को धारण नहीं कर सकता है । ( से तेणट्टेणं गोयला ! जाव तो पवएज्जा ) इस कारण हे गौन्म ! मैंने " यावत् जिस के धर्मान्तरायिक ६५८ હાય છે, તે જીવ કેવલી પાસેથી અથવા તેમના શ્રાવક વગેરે પાસેથી પ્રત્રજ્યાના ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના પણ મુંડિત થઇને ગૃહસ્થાવસ્થાના પરિત્યાગપૂર્ણાંક અણુગારાવસ્થા ( સાધુ પર્યાય ) અંગીકાર કરી શકે છે પરન્તુ "जरसणं धम्म' तराइयाणं कम्माणं खओवसमे तो कडे भाइ, सेणं असोच्चा केवलिस वा जाव मुडे भवित्ता जाव णो पव्वज्जा " ने ना वीर्यान्तराय ने शास्त्रि મેાહનીયના ક્ષચેપશમ થયેા હાતા નથી, એવા જીવ કેવલી પાસેથી અથવા તેમના શ્રાવક વગેરે પાસેથી પ્રયા ધારણ કરવાના ઉપદેશ જ્યાં સુધી સાંભળતા નથી ત્યાં સુધી તે મુત થઈને ગૃહસ્થાવસ્થાના પરિત્યાગ કરીને श्मयुगारावस्था धारषु उरी रातो नथी. " से तेणद्वेण गोयमा ! जाव नो पव्वज्जा" કે ગૌતમ ! તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે કોઈક જીવ કેવલી આદિની સમીપે
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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