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________________ ६४८ भगवतीय श्रवगवानल्पफलतया लभेत १ प्राप्नुयात् किमिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा ! असोचा णं केवलिस्स वा जाव तप्पविश्वयउवासियाए वा अत्थेगइए केलिपन्मत्तं धम्म लभेजा सवणयाए ' हे गौतम ! अम्त्येकाः कश्चिदन्यतमः पुरुपः केवलिनो वा यावत् केवलिश्रावकस्य वा, केवलिश्राविकाया था, केवल्युपासकस्य वा, केवल्युपासिकाया वा नत्याक्षिकस्य वा, तत्पाक्षिकश्रावकस्य वा, तत्पातिकथाविगृहीत किये गये हैं। इनके श्रावक अथवा श्राविका (तप्पक्खियमावगस्स वा तपक्खियसादियाए वा) इन पदों द्वारा प्रकट किये गये हैं। इसी तरह से इनके उपालक और उपालिका भी जानना चाहिये । यहां गौतम के प्रश्न का सारांश ऐसा है कि ऐसा जीव कि जिसने इन पूर्वोक्त केवली आदिकों के पास से केवलीप्रज्ञप्त धर्म के फलादिक को प्रतिपादन करने वाले वचनों को नहीं सुना है-अर्थात् धर्म का यथार्थस्वरूप नहीं जाना है-केवल यह धर्मानुराग से ही धर्म का सेवन करता है तो क्या ऐसे जीव को धर्मोपदेश सुनने से धर्म का यथार्थ स्वरूप जानकर धर्म का सेवन करने से जो फल प्राप्त होता है वह फल केवल धर्मानुराग से सेविन किये गये धर्म से प्राप्त हो सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोवला) हे गौतम ! (अमोच्चा णं केवलिस्प्त वा जाव तप्पक्खिय उवासियाए वा अत्थेगहए केलिपन्नत्तं धम्म लसेना, सवणयाए) कोई एक जीव ऐसा होता है जो केवली से या यावत्-केवली के श्रावक से, केवली की श्राविका से, केवली के उपासक से, केवली की उपासिका से, स्वय मुद्धने ५७९५ ४२पामा सास छ तमना श्राप मने श्राविधान " तप्प क्खियसावगस्म वा, तप्पक्खियसोवियाए वा " मा ५हो द्वारा घट ४२वामा આવેલ છે એજ પ્રમાણે તેમના ઉપાસક અને ઉપાસિકા વિષે પણ સમજવું ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નનું તાત્પર્ય એ છે કે જે જીવે પૂર્વોકત કેવલી આદિકની પાસે કેવલિબત્તમ ધર્મના ફલાદિકનું પ્રતિપાદન કરનારાં વચન સાંભળ્યા નથી–એટલે કે ધર્મનું યથાર્થ સ્વરૂપ જાણ્યું નથી, કેવળ ધર્માનુરાગથી જે તે ધર્મનું સેવન કરે છે. તે ધર્મનું યથાર્થ સ્વરૂપ જાણીને ધર્મનું સેવન કરવાથી જે ફળ પ્રાપ્ત થાય છે તે ફલ શું કેવલી આદિની પાસે ધર્મનું શ્રવણ કર્યા વિના માત્ર ધર્માનુરાગથી પ્રેરાઈની સેવેલા ધર્મ દ્વારા પ્રાપ્ત થાય છે ખરું? महावीर प्रभुन। उत्तर- गोयमा !” गौतम! ( अमोच्चाणं केव लिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा अत्थेगइए केवलिपन्नत्तं धम्म लभेज्जा, सवणयाए ) / 04 मेवो डाय छ २ पक्षी पासेथी, पसीना श्राप પાસેથી, કેવલીની શ્રાવિકા પાસેથી, કેવલીના ઉપાસક પાસેથી, કેવલીની ઉપા
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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