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________________ म भगवतीसूर्य यावत् नो संवृणुयात् । अश्रुत्वा खलु भदन्त ! केवलिनो यावत् केवलम् आभिनियोधिकज्ञानम् उत्पादयेत् ? गौतम | अश्रुत्वा खलु केवलिनो वा यावत् उपासिकाया वा अस्त्येककः केवलम् आमिनिवोधिकज्ञानमुत्पादयेत्, अस्त्येकका केवलम् आभिनिवोधिकज्ञानं नो उत्पादयेत् । तत् केनार्थेन यावत् नो उत्पादयेत् ? उपासिका से केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण किये विना शुद्ध संवर द्वारा आस्रवनिरोध रूप संवर नहीं होता है। (से तेणटेणं जाव नो संवरेज्जा) इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि यावत् संवर नहीं करता है। (असोचा सिंते ! केवलिस्ल जाव केवलं आभिणियोहियणाणं उप्पाडेज्जा) हे भदन्त ! केवली से या यावत् उनके पक्ष की उपासिका से केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण किये विना भी क्या कोई जीव शुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न कर सकता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (असोचा णं केवलिस्ल वा जाव उवासियाए चाअत्थेगइए केवलं आभिणियोहियनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए केवलं आभिणियोहियलाणं नो उप्पाडेजा) केवली से या यावत् उनके पक्ष की उपासिका से केवलिप्रज्ञप्त धर्मका श्रवण किये विना भी कोई एक जीव शुद्ध आभिनिवोधिक ज्ञान उत्पन्न कर सकता है, और कोई जीव शुद्र आभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न नहीं कर सकता है ? (से केण?ण जाव नो उप्पाडेजा) हे भदन्त! आप किस कारण से कहते हैं कि केवली ले या यावत् उनकी पाक्षिक उपासिका से केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण किये विना भी कोई जीव शुद्ध तेणदेणं जाव नो सवरेज्जा ) 3 गीतम! ४२ऐ में मेयु ४युं छे. (मडी "स.१२ ४२री शत। नथी," त्या सुधान 48 घडए ४२३.) (असोज्वाणं भंते ! केवलिस्स जाव केवल आभिनिवोहियणाणं उप्पाडेजा ?) હે ભદન્ત ! કેવલી પાસેથી અથવા કેવલી પાક્ષિક ઉપાસિકા પર્યતની કઈ પણ વ્યક્તિ પાસેથી કેવલી પ્રજ્ઞસ ધર્મનું શ્રવણ કર્યા વિના કેઈ જીવ શુદ્ધ આભિ निमाधि ज्ञान उत्पन्न 30 श छे मरे ? (गोयमा ! ) 3 गौतम । (असो. च्चाणं केवलिस्स वा जाव उवासियोए वा अत्थेगइए केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए केवल आभिणिवोहियनाणं नो उप्पाडेज्जा) सी पासेथी અથવા તેમના પક્ષની ઉપાસિકા પર્યન્તની કોઈ વ્યક્તિ પાસેથી કેવલીપ્રજ્ઞસ ધર્મનું શ્રવણ કર્યા વિના પણ કોઈ જીવ શુદ્ધ આભિનિબાધિક જ્ઞાન ઉત્પન્ન કરી શકે છે અને કેઈ જીવ શુદ્ધ આભિનિધિક જ્ઞાન ઉત્પન્ન કરી શકતા नथी. (से केणद्वेण जाव नो उप्पाडेन्जा १) महन्त ! भा५ ॥ ४॥२ એવું કહે છે કે કેવલી પાસે અથવા તેમના પક્ષની ઉપાસિકા પયતની કઈ
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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