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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९ उ०३१ र अश्रुस्याधादिलाभनिरूपणम् १२३ ___ छाया-राजगृहे यावत् एवम् अवादीत्-अश्रुत्वा खलु भदन्त ! केवलिनो वा, केवलिश्रावकस्य वा, केवलिश्राविकाया वा, केवल्युपासकस्य वा, केवल्युपा. मिकाया वा, तत्पाक्षिकस्य वा, तत्पाक्षिकश्रावकस्य वा, तत्पाक्षिकश्राविकाया वा, तत्पाक्षिकोपासकस्य वा, तत्पाक्षिकोपासिकाया वा, केवलिप्रज्ञप्तं धर्म लभेत श्रव अश्रुत्वा धर्मादिलाभवक्तव्यता 'रायगिहे जाव एवं वयाली' इत्यादि। सूत्रार्थ-(रायगिहे जाव एवं क्यासी) राजगृह नगर में यावत् गौतमने भगवान् से इस तरहसे पूछा-(असोच्चा णं भंते ! केलिस्स वा केवलि सावगस्स वा केवलि सावियाए वा, केवलि उवासगस्स वा, केवलि उयासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा, तप्पक्खियलावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खियउवासगरस वा, तप्पक्खिय उवासि. पाए वा केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्जा सयणयाए ?) हे भदन्त | केवली से अथवा केवली के श्रावक से, या केवली की श्राविका से, या केवली के उपासक के या केवली की उपासिका से या केवली के पाक्षिक-स्वयं घुद्ध से, या केवली के पाक्षिकश्रावक से, या केवली के पाक्षिक की श्राविका से या केवली के पक्ष के उपासक से, या केवली के पक्ष की उपासिका से विना सुने जीच को केवलज्ञानी द्वारा प्राप्त धर्मश्रवण का ~ सश्रुत्वा ( समस्या विना ) यहि सम तव्यता - " रायगिहे जाव एव वयासी" त्यात सूत्राथ-( रायगिहे जाव एवं वयासी ) २००४ नामां यावत् । गीतमस्पाभी ससवान महावी२२ मा प्रमाणे पूछ्यु-( असोच्चा णं भंते ! , केवलिस्स वो, केवलिसावगस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलिउवासगस्स वा, केवलिउवासियाए वा, तप्पक्खियस्म वा, तपक्खियसावगरस वा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खियउवासगरम वा, तप्पक्खियउवासियाए वा, केवल पन्नत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए ?) હે ભદન્ત ! કેવલી પાસેથી, અથવા કેવલીના શ્રાવક પાસેથી, અથવા કેવલીની શ્રાવિકા પાસેથી, અથવા કેવલીના ઉપાસક પાસેથી, અથવા કેવલીની ઉપાસિકા પાસેથી, અથવા કેવલીના પાક્ષિક (સ્વયં બુદ્ધ) પાસેથી, અથવા કેવલીના પાક્ષિક શ્રાવક પાસેથી, અથવા કેવલીના પાક્ષિક શ્રાવિકા પાસેથી, અથવા કેવલીના પક્ષના ઉપાસક પાસેથી અથવા કેવલીના પક્ષની ઉપાસિકા પાસેથી સાંભળ્યા વિના જીવને શું કેવળજ્ઞાની દ્વારા પ્રજ્ઞસ ધર્મશ્રવણનો લાભ થઈ શકે છે ખરો?
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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