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________________ ५७८ भगवतीले वर्णनम् औपपातिके वर्णितम् चम्पानगरी वर्णनमिवावसेयम् , 'मणिभद्दे चेहए, वण्णओ' मणिभद्रं नाम चैत्यम् आसीत् , वर्णकः, अस्य वर्णनमपि औपपातिकभूत्रोक्तपूर्णभद्रचैत्यवदवसेयम् । 'सामी समोसढे, परिसा निग्गया जाव भगवंगोयमे पज्जुवासमाणे एवं वयासी '-स्वामी महावीरः समवस्तः मिथिलासमागतः। समवसरणवर्णनमपि औपपातिकमुत्रे मत्कृतपीयुषवर्षिणीटीकायां त्रयोविंशतिमूत्रादारभ्य सप्तत्रिंशत्सूत्रपर्यन्तं विलोकनीयम् । पर्षत् निर्गता-भगवन्तं वंदितु नमस्कर्तुमागता, यावत् नमस्यित्वा प्रतिगता पर्षत् , ततो भगवन्तं महावीरं गौतमः पर्युपासीनः त्रिविधया पर्युपासनया पर्युपासनां कुर्बाणः सन् एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अबादीव-'कहि ण भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ? किं संठिए णं भंते ! जंबुदीवे दीवे ? ' हे भदन्त ! कुत्र प्रदेशे खलु जम्बूद्वीपो नाम द्वोपो इसका वर्णन जैसा औपपातिक सूत्र में चम्पानगरी का वर्णन किया गया है वैसा ही जानना चाहिये । ( मणिभद्दे चेइए ) यहां पर “ मणिभद्र" इस नाम का यक्षायतन था। (वण्णओ) इसका वर्णन भी औपपातिक सूत्र में वर्णित पूर्णभद्र चैत्य की तरह जानना चाहिये। (सामी समोसढे) महावीर स्वामी वहां पर पधारे। समवसरण का वर्णन भी औपपातिक सूत्र में मेरे द्वारा की गई पीयूषवर्षिणी टीका में किया गया है जो २३ वें सूत्र से लेकर २७ में सूत्र तक है। (परिसा निग्गया) भगवान को वन्दना करने के लिये, उन्हें नमस्कार करने के लिये वहां को परिषद् आई यावत् वह वन्दना और नमस्कार कर धर्मकथा सुनकर के वहां से वापिस चली गई पाद में त्रिविध पर्युषामना से पर्युपासना करते हुए गौतम ने उनसे इस प्रकार पूछा-(कहि णं भंते ! जवुद्दीवे या नाशनं वन यु छ, मे तेनुं वन समन'. “ मणिभदे चेइए" त्यां मणिभद्रनामे येत्य (यक्षायतन) तु. “वण्णओ" भी५५ति સૂત્રમાં જેવું પર્ણભદ્ર શૈત્યનું વર્ણન કર્યું છે, એવું જ તેનું વર્ણન સમજવું. “ सामी समोसढे " त्यो महावीर स्वामी ५धार्या. समवसरणतुं वन ५ પપાતિક સૂત્રની મારા દ્વારા લખાયેલી પીયૂષવર્ષિણ ટકામાં ૨૩ થી ૨૭ सुधान। सूत्रमा माच्या प्रमाणे समा. “ परिसा निग्गया" मानने વંદણું નમસ્કાર કરવા માટે ત્યાંની જનતા ( પરિષદ ) ત્યાં આવી. વંદણું નમસ્કાર કરીને તથા ધર્મોપદેશ સાંભળીને પરિષદ વિખરાઈ ગઈ. ત્યાર બાદ ત્રિવિધ પપાસનાપૂર્વક પર્યું પાસના કરીને ગૌતમ સ્વામીએ મહાવીર अनुने या प्रमाको पूछ\-( कहिण भते ! ज बुहोवे दीवे ? किं संठिए ण भते!'
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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