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________________ प्रमेयचन्द्रिका टो० श०८ ९० १० सू० ८ जीवादीनां पुद्गलपुद्गलिविचारः ५६७ न्द्रिय-रपर्शेन्द्रियाणि प्रतीत्य पुद्गली, जीवं प्रतील पुद्गलः, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-जीवः पुद्गली अपि, पुद्गलोऽपि । नैरयिकः खलु भदन्त ! किं पुद्गली, पुद्गलः ? एवमेव, एवं यावत् वैमानिकः, नवरं यस्य यावन्तीन्द्रियाणि, तस्य तावन्ति मणितव्यानि । सिद्धः खलु भदन्त ! किं पुद्गली, पुद्गलः ? गौतम ! नो पुद्: दिय, घाणेंदिय, जिभिदिय, फासिंदियाइं पडुच्च पोग्गली, जीवं पडुच्च पोग्गले, से तेणटेणं गोयमा! एवं चुच्चह जीने पोग्गली वि) जैसे कोई पुरुष छत्र से छत्री, दण्ड से दण्डी, घर से घटी, पट से पटी और कर से करी कहलाता है, उसी तरह से जीव भी श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुइन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा से पुद्गली कहलाता है तथा जीव की अपेक्षा से पुद्गल कहलाता है। इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि जीव पुद्गली भी है और पुद्गल श्री हैं। ( नेग्इए णं भंते ! किं पोग्गली, पोग्गले ) हे भदन्त ! नैरयिक जीव क्या पुद्गली है या पुद्गल है ? ( एवं चेर-एवं जाव वेमाणिए-नवरं जस्म जह इदियाई तस्स तड विमाणिकव्वाइं) है गौतम ! इस विषय में जीव की तरह कधन जानना चाहिये। इसी तरह का कथन यावत् वैमानिक तक ममझना चाहिये। किन्तु जिदन जीव के जितनी इन्द्रियां हों उस जीव के उतनी इन्द्रियां कहनी चाहिये। (सिडेणं भंते ! किं पोग्गली पोग्गले ) हे भदन्त ! सिद्ध क्या पुद्गली हैं या पुद्गल हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (नो जिभिदिय, फासि दियाइ पदुच्च पोग्गली, जीवं पडुच्च पोग्गले, से तेणट्रेणं गोयमा । एवं वुच्चइ जीवे पोग्गली वि पोगाले वि) रेभ. छत्रधारीन. છત્રી, દંડધારીને દંડી, ઘટધારીને ઘટી, પટવાળાને પટી અને ઠરવાળાને કરી કહેવામાં આવે છે, એ જ પ્રમાણે શ્રોત્રેન્દ્રિય, ચક્ષુઈન્દ્રિય, ઘ્રાણેન્દ્રિય, જીહુવાઇન્દ્રિય અને સ્પર્શેન્દ્રિયની અપેક્ષાએ પુલી કહેવાય છે તથા જીવની અપેક્ષાએ પુલ કહેવાય છે હે ગૌતમ! તે કારણ મેં એવું કહ્યુ છે કે જીવ પુલી ५ छ भने पुरस पण छे. ( नेरइए णं भाते ! कि पोग्गली, पोगले १) है महन्त ! ना२४ ७१ पुसी छे युद्ध छ ? (एव चेव-एव जाव वेमाणिए-नवर जस्स जइ इदियाइं तस्स तइ वि भौणियव्वाइ) 8 गौतम । मा વિષયમાં જીવના જેવું જ કથન સમજવું. એજ પ્રકારનું કથન વમાનિક પર્યન્તના જી વિષે પણ સમજવું. પરંતુ જે જીવને જેટલી ઈન્દ્રિયો હોય, તે पनी तटकी न्द्रियो डी मे (सिद्धे णं मते ! कि पोग्गली, पोगले १) 3 महन्त ! सिद्ध शु द्धसी छ है युद्ध छे ? ( गोयसा 1 ) 3 गौतम !
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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