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________________ ६२६ भगवती सूत्रे जीवानां दर्शनावरणीयस्य, वेदनीयस्य, मोहनीयस्य, आयुष्यस्य, नाम्नः गोत्रस्य, आन्तरायिकस्य च कर्मणोऽनन्ता अविभागरिच्छेदाः मज्ञापनीयाः । गौतमः पृच्छति' एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स एगमेगे जीवपए से णाणावर णिज्जस्स कम्मस्म के बइएहि अविभागपलिच्छे रहि आवेढियपरिवेढिए सिया' हे भदन्त ! एकैकस्य खलु जीवस्य एकैको जीवमदेशी ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः क्रियद्भिः अविभागपरिच्छेदैः परमाणुरूपैः निरणांशैः आवेष्टितः आ ईपत्परिवृतः परिवेष्टितः अत्यन्तं परिवृतः स्यात् ? भगवानाह - 'गोयमा । सिय आवेदिय परिवेढिए, सिय नो आवेढियपरिवे ढिए' हे गौतम ! एकैकजीवप्रदेशो ज्ञानावरणीय कर्माविभागपरिच्छेदैः परमाणुरूपैः अर्थात् नारक से लेकर वैमानिक तक के जीवों के दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय इन कर्मप्रकृतियों के अविभागपरिच्छेद अनन्त होते हैं ऐसा जानना चाहिये अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( एगमेगस्स णं भंते! जीवस्स एगमेगे जीवपए से णाणावर णिज्जस्स कम्मस्स के इएहिं अविभागपरिच्छेहिं आवेढिए परिवेढिए सिया) हे भदन्त ! आपने एक जीव के असंख्यात प्रदेश : कहे हैं - सो एक एक जीव का एक एक प्रदेश ज्ञानावरणीय कर्म के कितने अविभागपरिच्छेदों से परमाणुरूप निरंश अंशों से आवेष्टितईषत् परिवृत, परिवेष्टित - अत्यन्त परिवृत हैं ? इसके उत्तर में कहते हैं - ( गोयना सिय आवेढियपरिवेढिए, सिघ नो आवेढियपरिवेढिए) हे गौतम! ऐसा नियम नहीं है कि एक एक जीव का एक प्रभु વૈમાનિકા પન્તના સમસ્ત જીવેાના દનાવરણીય, વેદનીય, મેાહનીય, આયુષ્ય, નામ, ગેાત્ર અને અન્તરાય, એ આઠે કર્મોના અવિભાગી પરિચ્છેદો અન’ત होय छे, शेभ समन्वु डुवे गौतम स्वाभी भहावीर प्रभुने सेवा प्रश्न छे - ( एगमेगस्सणं भंते ! जीवस्त्र एगमेगे जीवपएसे णाणावर णिज्जर कम्मरस केवइएहि अविभागपरिच्छेए हिं आवेढिए परिवेढिए सिया ) हे लहन्त ! आये थे! त्रना असंખ્યાત પ્રદેશ કહ્યા છે. તેા એક એક જીવના એક એક પ્રદેશ જ્ઞાનાવરણીય કર્માંના કેટલા અવિભાગી પરિચ્છેદેથી (પરમાણુ રૂપ નિરંશ અંશથી આવેષ્ટિત પશ્લેિષિત હાય છે ? (આવેષ્ટિત એટલે સામાન્યરૂપે પરિવ્રુત અને પરિવેષ્ટિત એટલે અત્યન્ત પરિવૃત, આવે! આ બન્ને પદોના અથ થાય છે. ) भडावीर उलुना उत्तर- ( गोयमा ! खिय आवेढियपरिवेढिए, सिय नो आवेदियपरिवेढिए) हे गौतम! मेवा अर्ध नियम नथी हे शेड भेड
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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