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________________ का टी० श० उ०१० सू० ६ कर्मप्रकृतिनिरूपणम् ५२३ ज्जस्स णं भंते कम्मस्स केवइया अविभागपलिच्छेया पण्णत्ता ? १ ज्ञानावरणीयस्य खलु कर्मणः कियन्तोऽविभाग परिच्छेदाः प्रज्ञप्ताः ? परिच्छिद्यन्ते इति परिच्छेदा:- अंशास्ते च सविभागा अपि भवन्ति अतो विशिष्यन्ते - अविभागा अविभाज्याश्च ते परिच्छेदा अविभागपरिच्छेदाः निरंशाः अंशा इत्यर्थः, ते च निरंशा अंशाः कर्म परमाणूनामपेक्षया, अथवा ज्ञानस्य यावताम विभाग परिच्छेदानामंशानामाच्छादनं कृतं वर्तते तदपेक्षया ज्ञानावरणीयस्य कर्मण अनन्ताः सन्ति, एतेन ज्ञानावरणीयं यावतो ज्ञानस्याविभागान् अंशान् आच्छादयति तावन्त एव तस्य ज्ञानावरणीयस्याविभागपरिच्छेदाः, दलिकापेक्षया वाऽनन्ततत्परमाणुरूपाः सन्तीति फलितम् इत्यभिप्रायेण भगवानाह - 'गोयमा ! अनंता अविभागपलिच्छेया पण्णत्ता' हे गौतम ! ज्ञानावरणीयस्य कर्मण अनन्ता अविभागपरिच्छेदा:ज्ञानावरणीय कर्म के अविभागपरिच्छेद कितने कहे गये हैं ? जिनका दूसरा अंश नहीं हो सकता है ऐसे निरश अंशों का नाम अविभागपरिच्छेद हैं । परिच्छेद शब्द का अर्थ अंश है ये अंश विभाग सहित भी होते हैं । परन्तु जिन अंशों का विभाग नहीं होता है वे अंश अविभाग परिच्छेद शब्द से यहां प्रकट किये गये हैं । ऐसे अविभाग परिच्छेदनिरंश अंश ज्ञानावरणीय कर्म में कितने होते हैं ऐसा गौतम ने प्रभु से प्रश्न किया है- सो इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं (गोयमा) हे गौतम! ज्ञानावरणीय कर्म के अविभागपरिच्छेद ( अनंता पण्णत्ता) अनन्त कहे गये हैं । तात्पर्य कहने का यह है कि ज्ञानावरणीय कर्म पौलिक स्कन्धरूप है - पौगलिक स्कन्ध अनन्त प्रदेशों वाला भी होता है । क्यों कि संख्यात, असंख्यात और अनन्तप्रदेश पुल के सिद्धान्त में कहे જ્ઞાનાવરણીય કર્મીના અવિભાગી પરિચ્છેદો કેટલા કહ્યા છે ? ( જેમના બીજો 'શ થઇ શકતા નથી એવા નિરશ અશાને વિભાગ પરિચ્છેદ્ય કહે છે. પરિચ્છેદ્ય એટલે અંશ. તે અશ વિભાગસહિત પણ સભવી શકે છે. પરન્તુ જે અંશેાના વિભાગ થતા નથી એવાં અંશેાને અહીં · વિભાગ પરિચ્છેદ્ર શબ્દ દ્વારા પ્રકટ કરવામાં આવેલ છે. જ્ઞાનાવરણીય કર્માંના એવા અવિભાગ પરિચ્છેદ્ય ( નિર’શ શ ) કેટલા છે, એવુ અહીં ગૌતમ સ્વામીએ મહાવીર પ્રભુને પૂછ્યું છે. महावीर प्रभुना उत्तर-- “ गोयमा ! " डे गौतम ! ज्ञानावरणीय भना भविलागी परिछेहो " अणता पण्णत्ता ” अनंत ह्या छे. आ अथननुं तात्पर्य એ છે કે જ્ઞાનાવરણીય કમ પૌદ્ગલિક સ્કન્ધરૂપ છે-પૌદ્ગલિક સ્કન્ધ અન’ત
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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