SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 517
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रसयचन्द्रिका टी०।०८उ०१०९०४ पुद्गलास्तिकायस्वरूपनिरूपणम् ४९७ द्रव्यदेशः २, एवं सप्त भङ्गा भणितव्याः, यावत् स्यात् द्रव्याणि च, द्रव्यदेशश्च, नो द्रव्याणि द्रव्यदेशाच, चत्वारो भदन्त ! पुद्गलास्तिकायप्रदेशाः किं द्रव्यम् ? पृच्छा, गौतम ! स्याद् द्रव्यम् १, स्याद् द्रव्यदेशः२, अष्टापि भङ्गाः भणितव्याः किं दव्वं, व्वदेसे० पुच्छा) हे भदन्त ! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश क्या द्रव्यरूप हैं ? या एक द्रव्यदेशरूप हैं इत्यादि पूर्वोक्त रूप से यहां प्रश्नों का उद्धावन कर लेना चाहिये। (गोयमा) हे गौतम! (सिय दव्यं १, सिथ सव्वदेसे २, एवं सत्त भंगा भाणियन्वा) पुदलास्तिकाय के तीन प्रदेश कथंचित् एक द्रव्यरूप हैं, कथंचित् एक द्रव्यदेशरूप हैं , इस तरह से सात भंग कह लेना चाहिये। (जाव सिय दवाइंच दव्यदेसे य, नो दवाई व्वदेसा य ) यावत् वे कथंचित् अनेक द्रव्यरूप और एक द्रव्यदेशरूप हैं। परन्तु वे अनेक द्रव्यरूप और अनेक द्रव्यदेशरूप नहीं हैं। (चत्तारि भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसा किं दव्वं पुच्छा) हे भदन्त ! पद्धलास्तिकाय के चार प्रदेश क्या द्रव्यरूप हैं ? इत्यादि पूर्वोक्तरूप से यहां प्रश्नों का उद्भावन कर लेना चाहिये। (गोयमा ) हे गौतम ! (सिय दव्वं १ सिय दव्वदेसे २ अहवि अंगा भाणियबा) पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश कथंचित् एक द्रव्यरूप भी हैं १ कथंचित् (तिन्नि भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसा किव्व , दवदेसे पुच्छा ) महन्त ! પુલાસ્તિકાયના ત્રણ પ્રદેશ શું એક દ્રવ્યરૂપ છે કે એક દ્રવ્યદેશરૂપ છે? ઈત્યાદિ પૂર્વોક્ત પ્રશ્નો અહીં પણ પૂછવા જોઈએ, (गोयमा !) . गौतम ! (सिय दच', सिय दव्वदेसे एवं सत्त भंगा भाणियव्वा) पुनसास्तियन ऋष्य प्रदेश ज्या२४ मे द्र०य३५ डाय छ, श्या३४ द्रव्यदृश३५ हाय छे, मा प्रभारी (जाव सिय दवाईच दबदेसे य, नो दव्वाई दबदेसा य) " या२४ मने द्रव्य३५ अने से द्रव्यद्देश३५ खेल्य છે ” ત્યાં સુધીના સાત વિકપ કહેવા જોઈએ. પરંતુ તેઓ અનેક દ્રવ્યરૂપ અને અનેક દ્રવ્યદેશરૂપ હેતા નથી. ( चत्तारि भते । पोग्गलस्थिकायएसा किं दवे' पुच्छा) महन्त ! પુદ્ગલાસ્તિકાયના ચાર પ્રદેશ શું દ્રવ્યરૂપ છે ? ઈત્યાદિ પૂર્વોક્ત પ્રશ્નો અહીં य पूछवा. (गोरमा 1 ) 8 गौतम ! (सिय दव्ब १, सिय दव्वदेसे, अदृ वि भंगा भाणियव्वा ) Yaarयना या२ प्रदेश श्या३४ मे २०५३५ डाय छे,
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy