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________________ refer t० शे० ८ ० १० सू० ३ पुनलपरिणाम निरूपणम् ૪૨૨ टीका -' इचि णं भंते ! पोग्गल परिणामे पण्णत्ते' हे भदन्त ! कतिविधः खलु पुगल परिणाम. प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - ' गोयमा ! पंचविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते ' हे गौतम ! पञ्चविधः पुलपरिणामः प्रज्ञप्तः, ' तंजहा - वनपरिणामे १, गंधपरिणामे २, रसपरिणामे ३, फासपरिणामे ४, संठाणपरिणामे ५, ' तद्यथावर्णपरिणामः १, गन्धपरिणामः २, रसपरिणामः ३, स्पर्शपरिणामः ४, संस्थानपरिणामश्च ५, तत्र यत् पुलो वर्णान्तरत्यागाद् वर्णान्तरं प्राप्नोति असौ वर्णपणामे, जाव आययसंठगणपरिणामे ) जो इस प्रकार से है - परिमण्डल संस्थान परिणाम, यावत् आयत संस्थानपरिणाम | टीकार्थ - इससे पहिले जीवपरिणाम कहा जा चुका है। परिनाम का अधिकार होने से सूत्रकार पुलपरिणाम की वक्तव्यता कहते हैं - इसमें से गौतम ने प्रभु ऐसा पूछा है - ( कवि णं भंते ! पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते) हे भदन्त ! पुलपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं (गोयमा) हे गौतम! ( पंचविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते) पुलपरिणाम पाँच प्रकार का कहा गया है । ( तं जहा जो इस तरह से है - (वन्नपरिणामे, गंधपरिणामे, रसपरिणामे, संठाणपरिणामे ) वर्णपरिणाम, गंधपरिणाम, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम और संस्थान परिणाम- जो पुल एक वर्ण के परित्याग से अन्यवर्ण को प्राप्त करता है वह वर्णपरिणाम है - इसी तरह से गंध आदि परिणामों को भी जानना चाहिये । परिणामे ) परिभउस संस्थान परिणामथी सहने मायत संस्थान परियाभ પન્તના પાંચ પરિણામ અહીં ગ્રહણ કરવા ટીકાથ—મા પહેલાં જીવપરિણામનું પ્રતિપાદન થઇ ગયુ હવે પરિણામના અધિકાર ચાલુ હોવાથી સૂત્રકાર પુદ્ગલપરિણામનું નિરૂપણ કરે છે— ગૌતમ સ્વામી આ વિષયને અનુલક્ષીને મહાવીર પ્રભુને એવા પ્રશ્ન પૂછે ठे - ( कद्रविणं भते । पागलपरिणामे पण्णत्ते ? ) हे लह પુલ પરિણામના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે? મહાવીર પ્રભુ તેને જવાબ આપતા કહે छे -( प'चविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते) हे गौतम! युगल परिणामना पांथ अमर उद्या हो " त जहा " ते अमरो नीचे प्रमाणे छे" वन्नपरिणामे " - परिलाभ, " रसपरिणामे " रसपरिणाम, " गंधपरिणामे " गंधपरिणाम “फासपरिणामे " स्पर्शपरिणाम भने “संठाणपरिणामे " संस्थान परिणाम ने પુદ્ગલ એક વર્ણના પરિત્યાગ કરીને અન્ય વને પ્રાપ્ત કરે છે, તે પરિણામને વણુ પરિણામ કહે છે એજ પ્રમાણે ગધ આદિ પરિણામે વિષે પણ સમજવું,
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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