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________________ ४१२ भगवती करोति, सहाष्ट भवग्रहणानि पुनः नातिताम्यति, । एवं दर्शनागनापि, एवं चारित्राराधनामपि ।। मु० २ ॥ टीमा-'कडत्रिका णं भंते ! आराहणा पणना १ ' गीतमः पृन्छनि-डे मदन्त । कतिविधा फियत्यकारा ग्यलु आराधना निरनिचारतयाऽनुपालना मजमा ? भगनानाह-'गोयमा! तिमिहा आराहणा पणत्ता' हे गौतम ! त्रिविधा भाराधना प्रज्ञप्ता ? ' तं जहा-नाणाराहणा, दसणाराहगा, चरिताराणा' तद्यथा-जाना. सिसह, जाद अंत करे, सत्तभवागहणाई पुण नाहक्कमह, एवं दंस णाराहणं शि, एवं चरिताराहणं पि) कोठएक जीव तीसरे भव में सिद्ध होता है, यावत् समस्त दुवोका अंत कर देता है। यह जीव सात आठ भव से आगे भव धारण नहीं करता है। इसी तरह से जघन्य दर्शना. राधना और चारित्राराधना के विषय में भी जानना चाहिये। टीकार्थ-आराधना का प्रकरण होने से लूत्रकार प्रकार सहित आराधना की प्ररूपणा इस सत्र द्वारा कर रहे हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐमा पूछा है-(काइविहाणं भते ! आराहणा पण्णत्ता) हे भदंत ! आराधना कितने प्रकार की कही गई है ? ज्ञानादि गुणों का अतिचार रहित होकर पालन करना इनका नाम आराधना है। उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (तिविहा आराहणा पण्णत्ता) आराधना तीन प्रकार की कही गई है। (तं जहा) जो इस प्रकार से है(नाणागहणा, दंसणारादणा, चरित्ताराहणा) ज्ञानाराधना, दर्शनारामत करेइ, सत्तट्ठ भवगणाई पुण नाइक्कमइ, एवं दसण राहण पि, एवं चरिताराहण पि) as an aqui सिद्ध थाय छ भ२ समरत દુઃખને અંત કરે છે તે જીવ સાત આઠ ભવથી વધારે ભવ કરતાં નથી. એજ પ્રમાણે જઘન્ય દર્શનારાધના અને જઘન્ય ચારિત્રારાધનાના વિષયમાં પણ સમજવું. ટકાથું–આરાધનાનું નિરૂપણ ચાલી રહેલું હોવાથી સૂત્રકાર આ સૂત્ર દ્વારા પ્રકાર સહિત આરાધનાની પ્રરૂપણા કરે છે– ગૌતમ સ્વામી આ વિષયને અનુલક્ષીને મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન પૂછે छ :-" कइ विहाण भते ! आराहणा पण्णता ?" महन्त ! माराधना કેટલા પ્રકારની કહી છે? જ્ઞાનાદિ ગુણોનું અતિચાર રહિત પાલન કરવું, તેનું નામ આરાધના છે. मडावीर प्रसुना त्त२-" तिथिहा भाराहणा पण्णता" गीतम! माराधना त्रय प्रा२नी ही छे. " तजहा" २३ । २मा प्रभाव छ.
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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