SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 478
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती तत्र चतुर्पु मध्ये खलु यः स प्रथमः शीलसम्पन्नो नो श्रुतसम्पन्नः पुरुपजातः उक्तः, स खलु पुरुषः शीलवान् अश्रुतवान् व्यपदिश्यते, यतो हि उपरतः स्वबुद्धया पापा निवृत्तः, अविज्ञातधर्मा, भावतोऽनधिगतश्रुतज्ञानो बालतपस्वी भवति, गीतार्थानिश्रिततपश्चरणनिरतोऽगीतार्थों वा भवतीति भावः, अत एव 'एस णं गोयमा ! मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते' हे गौतम ! एष खलु प्रथमप्रकारः पुरुषो मया देशाराधकः प्रज्ञप्तः, देशं स्तोकमल्पं मोक्षमार्गस्याशयमाराधयतीत्यर्थः, सम्यग्योधअसुयवं, उवरए अविनायधम्मे ) इन चारों में से जो प्रथम पुरुष प्रकार है-कि जो शीलसंपन्न है, श्रुतसंपन्न नहीं है ऐसा कहा गया है सो ऐसा वह पुरुष अपनी बुद्धि से-अर्थात् बुद्धिपूर्वक पाप से निवृत्त होता है परन्तु वह भाव श्रुतज्ञान से अविज्ञात-अनभिज्ञ रहता है ऐसा प्राणी वालतपस्वी होता है-गीतार्थ से अनिश्रित तपश्चरण में निरत है अथवा स्वयं अगीतार्थ होता है । इस कारण-(एसणं गोयमा! मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते)हे गौतम! इस प्रथम प्रकारके पुरुषको मैंने देशाराधक कहा है । " देशं स्तोकं अल्पं मोक्षमार्गस्याशयं आराधयतीति-देशाराधकः" इस व्युत्पत्ति के अनुसार यह मोक्षमार्ग के आशय की पूर्णरूप से आराधना नहीं करता है किन्तु अल्प-देश रूप में करता है । देशरूप में करने का तात्पर्य ऐसा है कि यह सम्यग्ज्ञान से रहित होता है और क्रिया में तत्पर बना रहता है। "ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः" मोक्ष की प्राप्ति जाए से ण पुरिसे सीलव असुयव', उवरए अविनायधम्मे ) २॥ या२ प्रlરના પુરુષમાથી જે પહેલા પ્રકારના પુરુષ છે, તેઓ શીલવાન હોય છે પણ મૃતવાન હોતા નથી. આ પ્રકારના પુરુષે બુદ્ધિપૂર્વક પાપથી નિવૃત્ત હોય છે, પણ તેઓ ભાવ શ્રુતજ્ઞાનથી અવિજ્ઞાત (અનભિજ્ઞ) રહે છે. એવાં જીને બાલતપસ્વી (જ્ઞાનરહિત તપશ્ચરણ કરનાર) ગણવામાં આવે છે. ધર્મતત્વથી રહિત અનિશ્ચિત તપશ્ચરણમાં તેઓ લીન રહે છે. અથવા તેઓ પોતે જ सातार्थ छे। सूत्रथा मनभिज्ञ डाय छे. ते णे “ एस णं गोयमा ! मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते " . गौतम ! सा पडेसा प्रा२ना पुरुषाने में शारा छ. ( देशं स्तोकं अल्पं मोक्षमार्गस्याशयं आराधयतीति देशाराधक " આ વ્યુત્પત્તિ અનુસાર તે મોક્ષમાર્ગના આશયની પૂર્ણરૂપે આરાધના કરતા નથી, પણ અલ્પ (દેશ) રૂપે આરાધના કરે છે. દેશરૂપે આરાધના કરવાનું તાત્પર્ય એવું છે કે તે સમ્યાનથી રહિત હોય છે અને ક્રિયામાં તત્પર રહે छ. “ ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः " मोक्ष प्रालि ने ज्ञान मने हिया, मा
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy