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________________ प्रमेयान्द्रका टीका श० ८ उ० १० सू०१ शीलश्रुतादिनिरूपणम् ४४९ सुयं सेयंर,सुयं सेयं सील सेयं३, से कहमेयं भंते ! एवं? गोयमा! जन्नं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव जेते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि, एवं खल्लु मए चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहासीलसंपन्ने णाम एगे णो सुयसंपन्ने१, सुयसंपन्ने नामं एगे नो सीलसंपन्ने २, एगे सीलसंपन्ने वि, सुयसंपन्ने वि३, एगे णो सीलसंपन्ने नो सुयसंपन्ने४, तत्थ णं जे से पढमे पुरिसजाए सेणं पुरिसे सीलवं असुयवं, उवरए अविनायधम्मे, एसणं गोयमा! मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते१, तत्थ णं जे से दोच्चे पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवं सुयवं, अणुवरए विनायधम्मे, एस गं गोयमा ! मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते२, तत्थ णं जेसे तच्चे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलवं सुयवं, उवरए विन्नाय धम्मे एस णं गोयमा! मए पुरिसे सव्वाराहए पण्णत्ते३,तत्थ णं जेसे चउत्थे पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवं, असुयवं अणुवरए अविण्णायधम्मे,एसणं गोयमा! मए पुरिसे सव्वविराहए पण्णत्ते॥१ छाया-राजगृहे नगरे यावत् एवमवादीत्-अन्ययूथिकाः खलु भदन्त ! एवमाख्यान्ति, यावत्-एवं प्ररूपयन्ति-एवं खलु शीलं श्रेयः१,श्रुतं श्रेयः२, श्रुतं श्रेयं शीलश्रुतादि वक्तव्यता रायगिहे नयरे जाव एवं क्यासी' इत्यादि। सूत्रार्थ-(रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी) राजगृह नगर में यावत गौतम ने प्रभु से इस प्रकार से पूछा-(अन्नउत्थियाणं भंते ! एवमाइ શીલઘુતાદિ વક્તવ્યતા– - " रायगिहे नयरे जाव एवं पयासी" त्याह सूत्रा--( रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी) २४ नगरमा भलीવીર પ્રભુ પધાર્યા, યાવત ગૌતમ સ્વામીએ મહાવીર પ્રભુને આ પ્રમાણે भ ५७
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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