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________________ - - प्रमपन्द्रिका टीश०६४०९८०१० औदारिकादियन्त्रस्य परसारसम्बन्धनि०४२७ सह बन्ध विपये यथैव औदारिकेण सर्वबन्धकेन समं साकं मणितं तथैव भणितव्यम् यावत् देशबन्धको भवति, नो अबन्धको भवति, बन्धकेऽपि देशबन्धक एव भवति, नो सर्ववन्धको भवतीति भावः, एवञ्च यथौदारिकशरीरसर्वबन्धकस्य जीवस्य तेजसकार्मणशरीरयोर्देशवन्धकत्वमुक्तं नो सर्ववन्धकं तथैव वैक्रियशरीरसर्वबन्धकस्यापि जीवस्य तैजसकामणयोर्देशवन्धकत्वमेव वक्तव्यं नो सर्ववन्धकत्वमिति फलितम् , अथ वैक्रियशरीरदेशवन्धेन सह अन्येषां वन्धं प्ररूपयति-'जस्स गंभंते ! वेउन्धियसरीरस्स देसर्वधे, सेणं भंते ! ओरालियसरीरस्स किं बंधए, अवधए ? 'हे भदन्त ! यस्य खलु जीवस्य वैक्रियशरीरस्य देशवन्धो भवति, हे भदन्त ! स खलु वैक्रियशरीरदेशवन्धको जीवःकि औदारिकशरीरस्य बन्धको भवति, अवन्धको वा ? भगवानाह-' गोयमा ! नो बंधए, अबंधए' हे गौतम ! वैक्रियशरीरदेशबन्धको जीवः औदारिकशरीरस्य नो बन्धको भवति, अपितु अबंधको भवति, “ एवं जहा सव्वबंधेणं भणियं, तहेच देसबंधेणवि भाणियच्वं, जाव कम्मगस्स' एवम् उक्त णशरीर का देशबंधक होता कहा गया है उसी प्रकार से वैक्रियशरीर का सर्वबंधक जीव तैजस और कार्मणशरीर का देशबंधक ही होता है अबंधक और सर्वबंधक नहीं होता है। (जस्स f अंत ! वेउब्धियसरीरस्स देसवंधे से णं भंते। ओरालियसरीरस्स किंबंधए अबंधए)हे भदंत! जो जीव क्रियशरीरका देशबंधक है वह क्या औदारिकशरीर का बंधक होता है या अबंधक होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा! नो बंधए, अपंधए) हे गौतम! वैक्रियशरीर का देशबंधक जीव औदा. रिकशरीर का बंधक नहीं होता है-किन्तु वह उसका अबंधक ही होता है। (एवं जहा सव्वबंघेणं भणियं-तहेव देसबंधेण वि भाणियचं जाय એવું કહેવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણે વેકિયશરીરને સર્વબંધક જીવ પણ રજસ અને કાર્યણુશરીરનો દેશબંધક જ હોય છે, તે તેમનો અખંધક કે સર્વબંધક હેતે નથી, એમ સમજવું. गौतभावामीना प्रश्न-(जस्स गं भंते ! वेउब्वियसरीरस्स देसषधे, से णं भते ! ओरालियसरीरस्स किं यधए, अवधए ?) 8 महन्त ! २ ७१ ક્રિયશરીરને દેશબંધક હોય છે, તે શું ઔદારિક શરીરને બંધક હોય છે, કે અબંધક હોય છે ? महावीर प्रभुने। उत्त२-(गोचमा !) गौतम ! (नो वधए, अब'धए ) यशरीरनी देश ७१ मोहा२ि४२२नो ४ खात नथी. ५५ ते तन मम डाय . ( एवं जहा सव्वगं भणियं, वहेप
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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