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________________ ४२४ ‘भगवतीक्षा किं बंधए ? ' हे भदन्त ! औदारिकशरीरस्य सर्ववन्धकः किं कार्मणशरीरस्य बंधको भवति ? किं वा अवन्धको भवति?, भगवानाह-'जहेब तेयगस्स जाव देसबंधए, नो सव्यवंधए' हे गौतम ! यथैव तैजसस्य शरीरस्य यावत् बन्धको देशवन्धकरूप एवोक्तो नो सर्वबन्धकस्तथैव काम णशरीरस्यापि वन्धको देशवन्धक एव भवति, नो सर्ववन्धको भवति, उक्त रीत्या औदारिकशरीरस्य सर्ववन्धमाश्रित्य शेपाणां वन्धप्ररूपणं कृत्वा अथौदारिकस्यैव शरीरस्य देशबन्धमाश्रित्य अन्येपां बन्ध प्ररूपयितुमाह-' जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरस्स देसवधे, से णं भंते ! वेउधियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए ? ' हे भदन्त ! यस्य खलु जीवस्य औदारिकशरीरस्य देशवन्धो भवति, भदन्त । स खलु जीवः किं वैक्रियशरीरस्य बन्धको भवति, अवन्धको वा भवति ? भगवानाह-'गोयमा ! नो बंधए, अबंधए ' हे गौतम ! औदारिकशरीरस्य देशबन्धको जीवो वैक्रियशरीरस्य नो होता है-सर्वबंधक नहीं। यही बात-(कम्मासरीरस्म किं यंधए अर्थधए ) इत्यादि प्रश्नोत्तररूप सूत्रपाठ डाग क्त की गई है। इस प्रकार औदारिक शरीर के सर्वरध को लेकर शेष वैक्रियादिशरीरों के यंधकी प्ररूपणा की गई है-अब औदारिकशरीर के ही देशबंध को लेकर सूत्र. कार वैक्रियादिशरीरों के बंध की प्ररूपणा करते हैं-इममें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-(जस्स णं भंते ! ओरालिय सरीरस्म देसबंधे-से ण भंते ! वेउ व्वयसरीरस्स किं बं.ए अबंघए ) हे भदन्त ! जो जीव औदारिकशरीर का देशबंधक है, वह क्या वैक्रियशरीर का यंधक होता है ? या अबंधक होता है ? हमके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! ( नो बंधए, अबंधए ) औदारिक शरीर का देशकयंध जीव म हाती नथी, मे पात सूत्र॥३-( कम्मासरीरस्स कि बधए, अवधए ) ઈત્યાદિ પ્રશ્નોત્તરરૂપ સૂત્રપાઠ દ્વારા વ્યક્ત કરી છે. આ પ્રમાણે દારિકંદરી રના સર્વધને અનુલક્ષીને બાકીના વૈક્રિયાદિ શરીરના બંધની પ્રરૂપણા કરવામાં આવી છે. હવે સૂત્રકાર ઔદારિક શરીરના દેશબંધની અપેક્ષાએ વૈક્રિય આદિ શરીરને બંધની નીચેના પ્રશ્નોત્તરે દ્વારા પ્રરૂપણ કરે છે– . गीतभस्वाभाना प्रश्न - जस्स ण भंते ! ओरालियसरीरस्स देसवंधे, से ण भंते ! वेउव्वियसरीरस्स कि बधए, अबंधए ? ) महन्त ! २० मोडा२ि४शरीरने। દેશબંધક છે, તે શું વિઝિયશરીરને બંધક હોય છે, કે અબંધક હોય છે ? भावी२ प्रसुने। उत्तर-( गोयमा !) गौतम! (नो वंधए, अबधएं) ઔદાકિશરીરને દેશબંધક જીવ વૈક્રિયશરીરને બ ધક હેતે નથી પણ
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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