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________________ - - ४०८ भगवतीले गोत्रा-ऽऽन्तरायिकस्य कार्यणशरीरप्रयोगबन्धस्थापि अनादिकस्य सपर्यवसितस्य, अनादिकस्य अपर्यवसितस्यचान्तरं नास्तीति तात्पर्यम् । अथ तैजसशरीरमयोगवन्धापेक्षया कामणशरीरप्रयोगवन्धस्य विशेष प्रतिपादयितुमाह- एएसिणं भंते | जीवाणं नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स देसबंधगाणं, अवंधगाण य कयरे कयरेहितो जाव अप्पाबहुगं जहा तेयगस्स, एवं आउयवज्ज जाव अंतराइयस्स' गौतमः पृच्छतिएतेषां खलु जीवानां ज्ञानावरणीयस्य कार्मणस्य शरीरमयोगस्य देशबन्धकानाम् अबन्धकानां च मध्ये कतरे कतरेभ्यो यावत् अल्पा वा, वहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा भवन्ति ?, भगवानाह-हे गौतम ! अल्प बहुत्वकं यथा तेजसरय शरीरप्रयोगवन्धस्य विषये सर्वस्तोकत्वम् अवन्धकानाम् , अनन्त गुणत्वं च देशबन्धकानां प्रतिपादितं तथैव ज्ञानावरणीयकामणशरीरमयोगवन्धविषयेऽपि सर्व ___ अब सूत्रकार तेजमशरीरप्रयोगवध की अपेक्षा कार्मणशरीरप्रयोगवंध की विशेषना प्रतिपादिन करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है ( एएमि णं भंते ! जीवा गं नागावरणिज्जस्स कम्सस्स देमयं धगाणं अव धगाणं य कयरे कयरे हिंतो जाव अप्पा यहगं जहा तेयगस्ल, एवं आरगवज्ज जाव अनगडयस्प) हे भदन्त ! इन ज्ञानावरणीय कार्मणशरीरप्रयोग के देशव धक और अबंधक जीवों के बीच में कौन जीव किन जीवों से यावत्-अल्प है ? कौन जीव किन जीवों से बहुत हैं ? कौन जीव किन जीवों के बराबर हैं और कौन जीव सिन जीवों से विशेषाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम | जिस प्रकार से तैजस कार्मणशरीरप्रयोगबध के विषय में अवधक जीवों को सब से कम कहा गया है और इनको अपेक्षा देशबंधकों को अनंतगुणा कहा गया है उसी तरह से ज्ञानावाणोयकार्मणशरीरप्रयोगबंध के विषय में भी अबन्धक जीवों को सब से कम और देशपन्धकों को गौतम वाभीना प्रश्न-( एएसि ण भते ! जीवाण नाणावरणिज्ज कम्मरस देसब धगण , अब धगाण य कयरे कयरेहितो जाव अप्पा बहुगं जहा तेय गस्स, एवं आउगवलं जाव अतराइयस्स ) त्यादि महन्त ! ज्ञानावरणीय કામણ શરીર પ્રગના દેશબ ધક છમાં અને અબંધમાં કયા છો કયા જીવો કરતાં અલ્પ છે? કયા કયા જ કરતાં અધિક છે ? કયા જીવો કયા ની બરાબર છે? કયા કયા જી કરતા વિશેષાધિક છે महावीरप्रभुना -"गोयमा ! गौतम रेभ तेस शरी२ प्रयोगना અબ ધકે સૌથી ઓછાં કહ્યા છે અને દેશ મંધકે અબ ધકે કરતાં અનંતગણ કહ્યાં છે, એ જ પ્રમાણે જ્ઞાનાવરણીય કાર્માણ શરીર પ્રયોગના અબંધક છે સૌથી
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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