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________________ प्रमैयचन्द्रिका टी० श०८ उ० ९ सू० ९ कार्मणशरीरप्रयोगवन्धवर्णनम् ३८७ ___टीका-सम्मासरीरप्पओगवंधे णं संते ! कइबिहे पण्णत्ते ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कार्मणशरीरप्रयोगवन्धः खलु कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा ! अट्ठविहे पणत्ते ' हे गौतम ! कामणशरीरप्रयोगबन्धः खलु अष्टविधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा-नाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पओगबंधे जाव अंतराइयकम्मासरीरप्पओगवंधे' तद्यथा ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगवन्धः, यावत् दर्शनावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबन्धा, वेदनीयकार्मणशरीरप्रयोगवन्धः, मोहनीयकार्मणशरीरमयोगवन्धः, आयुष्मकार्मणशरीरप्रयोगवन्धः, नामकार्मणशरीरप्रयोगवन्धः, गोत्रकार्मणशरीरप्रयोगवन्धः, अन्तरायिककार्मणशरीरप्रयोग टीकार्थ-इस सूत्र द्वारा सूत्रकार ने कार्मणशरीरप्रयोगबंध की प्ररूपणा की है-इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है कि-(कम्मासरीर प्पओगवघे णं भंते ! कदाविहे पण्णत्ते) है सदन्त ! कार्मण शरीरप्रयोग बंध कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! ( अट्टविहे पण्णत्ते) कार्मणशरीरप्रयोगबध आठ प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) जो इस प्रकार से है-(नाणावरणिज कम्मा सरीरप्पओगवधे जाव अंतराइय कम्मा सरीरप्पओगबंधे)ज्ञानावरणीय कामण शरीरप्रयोगबध यावत् अन्तराय कार्मणशरीरप्रयोगबंध यहां " यावत्" शब्द से दर्शनावरणीय कार्मणशरीरप्रयागरन्ध वेदनीय कार्मण शरीरप्रयोगबंध, मोहनीय कार्यण शरीरप्रयोगबंध, आयुष्क फार्मण शरीरप्रयोगबध, नामकार्मणशरीरप्रयोगध, गोत्रकामणशरीरप्रयोगवंध" इन कार्मण शरीरप्रयोगों का ग्रहण हुआ हैं। ટીકા–આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે કર્મણ શરીર પ્રયોગબંધની પ્રરૂપણ કરી છે. આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન पूछे छे -(कम्मासरीरप्पओगबधे ण भंते ! काविहे पण्णत्ते १) महन्त ! કાર્મણ શરીર પ્રગબધ કેટલા પ્રકારને કહ્યો છે? महावीर प्रसुन उत्तर- गोयमा ! अविहे पण्णत्ते-तजही " हे गीत ! म शरी२ प्रयोगम'धन। नीय प्रमा) 2418 ४.२ ४ा छ-( नाणावरणिज्ज कम्मासरीरप्पओग बधे अंतराइय कम्मासरीरप्पओग बघे) (१) ज्ञानाशीय કામણ શરીર પ્રગબંધ, (૨) દર્શનાવરણીય કામણ શરીર પ્રગબંધ (૩) વેદનીય કામણ શરીર પ્રયોગ ધ, (૪) મેહનીય કામણ શરીર પ્રોગબંધ (५) मायु ए शरी२ प्रयोग , (६) नाम भी शरी२ प्रयोगम, (૭) ગોત્ર કાર્ય શરીર પ્રયોગ બંધ અને (૮) અંતરાય કામણ શરીર પ્રગબંધ,
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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