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________________ भगवती सूत्रे ३६८ मज्ञापनाया एकविंशतितमे पदे यावत् पृथिवीकायिकाऽपकायिक- तेजस्कायिकवायुकायिक वनस्पतिकायिक-रूपैकेन्द्रिय-द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय- पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकमनुष्य - नैरयिक भवनपति वानव्यन्तर- ज्योतिषिक - वैमानिक - नव ग्रैवेयक पर्याप्तकापर्यातकदेव पञ्चेन्द्रिय तैजसशरीरमयोगबन्धः ' पज्जतसव्त्रसिद्ध अणुत्तरोत्रवाइयकप्पाईय-वेमाणियदेवपचिदियतेयासरीरप्पओगबंधे य' पर्याप्तकसर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिक कल्पातीतक- वैमानिकदेवपञ्चेन्द्रिय तैजसशरीर प्रयोगवन्धव, अपज्जतन्त्रसिद्ध अणुत्तरोववाइयजावबंधे य' अपर्याप्त सर्वार्थसिद्धानुचरोपपातिक यावत्-कल्पातीतक वैमानिकदेवपञ्चेन्द्रियतैजसशरीरमयोगबन्धश्थ, प्रतिपादिनस्तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्य इतिभावः गौतमः पृच्छति' तेयासरीरप्पओगवंवे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदपणं ? ' हे भदन्त ! तैजसशरीरमयोगवन्धः 1 - २१ वें पद में यावत् " पृथिवीकायिक, अप्रकायिक तैजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिकरूप एकेन्द्रिय, तथा हीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय निर्यच, मनुष्य, नैरयिक, भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, वैमानिक, नवग्रैवेयक, पर्याप्त, अपर्याप्त देव पंचेन्द्रिय इनका तैजस शरीरप्रयोगव ध (पज्जत्त सम्बद्धमिद्ध अणुत्तरोववाइयकप्पाईय वैमाणिय देवचिदिय तेयासरीरप्पओगबधे य) पर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कलवानीतक वैमानिक देव पञ्चेन्द्रिय इनका तैजम शरीर प्रयोगवध ( अपज्जत सम्वट्टसिद्ध अणुत्तरोववाहय बधे ) तथा अपसर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपानिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय इनका तैजस शरीरप्रयोग बंध " जिस प्रकार से यहां तक प्रतिपादित किया गया है उसी प्रकार से यहां पर भी समझना चाहिये । 66 પૃથ્વીકાયક, અપ્રકાયિક, તૈજસ્ફાયિક, વાયુકાયિક, અને વનસ્પતિકાયિક રૂપ शोौन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय यतुरिन्द्रिय, यथेन्द्रिय तिर्यय, मनुष्य, नैरथिए, लवनयति, वानव्यन्तर, ज्योतिषिङ, वैभानि, नवत्रैवेयङ, पर्याप्त, अयर्याम, द्देवय'थैन्द्रिय, या लवान तैन्ट्स शरीर प्रयोगमध, (पज्जच सव्वट्टसिद्ध अणुत्तरो ववाइ करपाईया वैमाणियदेवप चिंदिय तेया सरीरप्पओगब वे य) पर्याप्त, सर्वार्थ सिद्ध અનુત્તરૌપપાતિક કલ્પાતીત વૈમાનિક દેવપ ચેન્દ્રિયના તૈજસ શરીરના પ્રયાગમધ, तथा ( अपज्जत सट्टसिद्ध अणुत्तरोववाइय जाव बधे ) अपर्याप्तः सर्वार्थसिद्ध અનુત્તરૌપપાતિક કલ્પાતીત વૈમાનિક દેવપ ચેન્દ્રિયના તેજસશરીરના પ્રત્યેાગમ’ધ” પ્રજ્ઞાપનના અવગાહન સંસ્થાન પદ્મમાં આ પ્રમાણે જે પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રકારનું પ્રતિપાદન અહીં પણ કરવું જોઇએ.
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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