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________________ trafat ahet t० ८ उ०९ ०५ चैक्रियप्रयोग वन्द्यवर्णनम् ३१९ भगवानाह - ' गोयमा ! सव्वबंधतरं जहणेणं अतोमुहुत्तं, उक्को सेणं पुचकोडी - हुत्तं एवं देवंधंतरपि, मणूसस्स वि' हे गौतम । तिर्यग्योनिकवें क्रियपश्ञ्चेन्द्रियशरीरप्रयोगस्य सर्ववन्धान्तरं जघन्येन अन्तर्मुहूर्त भवति, उत्कृष्टेन तु पूर्व कोटीपृथक्त्वम् एवं स्यैव देशवन्धान्तरमपि जघन्येन अन्तर्मुहूर्त भवति, उत्कृष्टेन तु पूर्व कोटीपृथक्त्वम् एवं रीत्यैव देशवन्धान्तरमपि जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृso पूर्व कोटी पृथक्त्वं द्वाभ्यामारभ्य नवपूर्व कोटीपर्यन्तं भवति, एवमेव मनुष्यस्यापि वैक्रियशरीरमयोगस्य सर्ववन्वान्तरं जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन पूर्वकोटी पृथक्त्वमव सेयम्, अत्र च पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिको वैक्रियं गतः, तत्र च प्रथम समये सर्ववन्धकः, ततः पर देशवन्धकः अन्तर्मुहूर्तम् ततः औदारिकस्य " के सर्वबंध में और इस सर्वबंध में उत्कृष्ट से अन्तराल पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण आता है । देशबंधका भी अन्तराल इसी तरह से समझना चाहिये । अथ गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेन्दियसरीरप्पओगबंधतरं पुच्छा ) हे भदन्त । तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय के वैक्रियशरीरबंधका अन्तर काल से कितना होता है । इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं - ( गोयमा ) हे गौतम! ( सव्वबंधंतरं जहपणेणं अंतोमुद्दत्तं उकोसेणं पुञ्चकोडी पुहुत्तं एव देसबंधंतरं पि सस्स वि) तिर्यग्योनिक पञ्चेन्द्रियवैकियशरीरप्रयोगबंध का सर्वबंधान्तर जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का होता है और उत्कृष्ट से पूर्वकोटि पृथक्त्व का होता है। दो पूर्वकोटि से लगाकर नौ पूर्व कोटिक की संख्या का नाम पूर्वकोटि पृथक्त्व है। इसी तरह से અસખ્યાતમાં ભાગપ્રમાણુ અન્તરાલ ( અંતર ) આવી જાય છે. દેશમધનું અંતરાલ ખાસ એ જ પ્રમાણે સમજવું. गीतभस्वाभीने प्रश्न - ( तिरिक्खजोणिय पंचिदिय वेठव्वियसरीरप्पओगव घ'तर' पुच्छा ) हे लहन्त ! तिर्यययोनि च येन्द्रियना वैडियशरीरप्रयोगमधनु અંતરકાળની અપેક્ષાએ કેટલુ હાય છે ? महावीर अलुना उत्तर - ( सव्वबंधंतर जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी पुहुप्त, एवं सबंध तर पि, मणूसस्स वि ) पथेन्द्रिय तिर्य ययोनिना વૈક્રિયશરીરમ’ધનું સ`ખ ધાન્તર જઘન્યની અપેક્ષાએ એક અન્તર્મુહૂતનું અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ પૂર્વ કાટ પૃથકત્વનું... હાય છે ( એ પૂ કાટિથી લઈને નવ પૂર્વકેટ સુધીની સખ્યાત પૂર્ણાંકાટ પૃથકત્વ કહે છે) એજ પ્રમાણે
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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