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________________ प्रमेयचन्द्रिका री0 श० ८ २०९ २० ५ वैक्रियशरीरप्रयोगधन्धवर्णनम् ३११ णकोवक्तव्यः, उत्कर्षेण देशबन्धश्च सर्वबन्धसमयन्यूनस्वस्वोत्कृष्टस्थितिप्रमाणको वक्तव्य इत्यभिप्रायेणाह-' एवं जाव अहेसत्तमा, नवरं देसवंधे जा जस्स जहमिया ठिई सा तिसमयऊणा कायद्या, जस्स जा उकोसा सा समयूणा' एवं पूर्वोक्तरीत्यैव यावत्-शकराप्रभा-वालुकाप्रभा-पङ्कमभा-धूमप्रभा-तमःमभा-तमस्तमःप्रभाऽधः सप्तमीपृथिवीनरयिकपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगस्य सर्ववन्धः एक समयं भवति, नवरं विशेषस्तु देशबंधो यस्य नैरयिकजीवस्य या यावती जघन्यिका जघन्येन स्थितिरायुष्यकालः, सा त्रिसमयन्यूना कर्तव्या, यस्य च या उत्कृष्टा स्थितिः सा समयोना कर्तव्या, तथैव प्रदर्शिता चेति भावः, पञ्चेन्द्रियतियङ्मनुष्याणां वैक्रियसर्ववन्धः एकं समयं भवति, देशवन्धस्तु जघन्येन एकं समयम् , उत्कृष्टेन कम दश १० हजार वर्ष का और उत्कृष्टकाल एक समय कम एक सागरोपम का कहा गया है-इसी तरह से द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ट, और सप्तम इन सब नरकों में रहने वाले जीव के वैक्रिय शरीर का सर्वबंध काल एक समय और देशबंध का जघन्य काल तीन समय कम अपनी २ जघन्य आयु बराबर है और उत्कृष्ट देशवध काल सर्ववध के एक समय से कम अपनी २ उत्कृष्ट आयु बराबर है। इसी अभिप्राय को लेकर (एवं जाव अहे सत्तमा-नवरं देसबंधे जा जस्स जहन्निया ठिई सा तिसमयऊणा कायव्वा) ऐसा कहा गया है। पंचेन्द्रियतिथंच और मनुष्यों के वैक्रिय शरीर का सर्वबंध काल एक समय का और देशबंध काल जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से अन्तमुहूर्त का होता है। यही बात सूत्रकार ने वायुकायिक जीवों के वैक्रिय ધને જઘન્યકાળ ૧૦ દસ હજાર વર્ષ કરતાં ત્રણ ઓછા સમયનો અને ઉત્કટકાળ એક સાગરોપમ કરતાં એક ન્યૂન સમયને કહ્યું છે, એ જ રીતે બીજી ત્રીજી, ચેથી, પાંચમી, છઠ્ઠી અને સાતમી નરકેમાં રહેનારા નારકના ચિ શરીરને સર્વબંધકાળ એક સમયને અને દેશબંધને જઘન્યકાળ તેમની જેટલી જઘન્ય આયુ સ્થિતિ હોય તેના કરતાં ત્રણ ન્યૂન સમય પ્રમાણ સમજ અને દેશબંધને ઉત્કૃષ્ટ કાળ જેમની જેટલી ઉત્કૃષ્ટ આયુ સ્થિતિ तेना ४२तां मे न्यून समय प्रभार सभा से पात सूत्ररे ( एवं जाव अहे सत्तमा-नवर देसबधे जा जस्स जहन्निया ठिई सा तिसमयऊगा कायव्वा) આ સૂત્ર દ્વારા પ્રતિપાદન કર્યું છે. પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ અને મનુષ્યના વૈકિયશરીરને સર્વબંધકાળ એક સમયને અને દેશબંધકાળ ઓછામાં ઓછા એક સમયને અને વધારેમાં
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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