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________________ प्रमेयपद्रिका टी० श०८ उ० ९ सू० ५ क्रयिकशरीरप्रयोगमावर्णनम् २९५ 'तं जहा-एगिदियवेउब्वियसरीरप्पओगमधे य, पंचिंदियवेउब्बियसरीरप्पओगवंधे य' तद्यथा-एकेन्द्रियचैक्रियशरीरप्रयोगवन्धश्च, पञ्चेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धश्च, तत्र वायुकायिकापेक्षया 'एकेन्द्रिवैक्रियशरीरप्रयोगबन्धः' इत्युक्तम् , वायुभिन्न केन्द्रियाणां वैक्रियशरीराभावात् , अथ च पञ्चेन्द्रियतिर्यग्मनुष्यदेवनैरयिकापेक्षया च पञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगवन्धः' इत्युक्तम् , तद्भिन्नानां पञ्चन्द्रियवैक्रियशरीर. प्रयोगवन्धाभावात् । गौतमः पृच्छति-'जइ एगिदियवेउब्धियसरीरप्पओगवंधे किं वाउकाइयएगिदियसरीरप्पओगबंधे य ? अबाउक्काइयएगिदियवेउव्वियसरीरप्पभोगवंधे य?' हे भदन्त ! यः खलु एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगवन्धः उक्तः जो इस प्रकार से है-(एगिदिय वेउन्वियमरीरप्पओगवधे य, पंचिंदिय वेउब्वियसरीरप्पओगबंधे य ) एकेन्द्रिय वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध और पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोगव ध यहां जो "एकेन्द्रिय वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध" ऐसा कहा गया है-सो वह वायुकायिक जीवों की अपेक्षा लेकर कहा गया है। क्यों कि इन जीवों के वैक्रिय शरीरप्रयोगबध होता है। इनके सिवाय अन्य एकेन्द्रिय जीवों में यह नहीं होता है। तथा दूसरा जो भेद कहा गया है वह पंचेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा लेकर कहा गया है। क्यों कि यह उन जीवों में होता है। अर्थात् यह वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध पंचेन्द्रियों में पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों के, मनुष्यों के, देवों के और नारक जीवों के होता है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(जइ एगिदिय वेउन्वियसरीरप्पओगवधे किं वाउकाइयएगिदिय सरीरप्पओगधे य, अवाउकाइयएगिदियवेउन्वियसरीरप्पओगबंधे य) हे भदन्त ! यहाँ जो प्पओगबधे य, पचिंदिय वेउब्वियसरीरप्पओगबघे य) (१) सन्द्रिय કિયશરીર પ્રગબંધ અને (૨) પંચેન્દ્રિય વૈક્રિયશરીર પ્રોગબંધ અહીં જે એકેન્દ્રિય વિઝિયશરીર પ્રયોગબંધ” નામને પહેલે પ્રકાર કહ્યો છે તે વાયુકાયિક જીની અપેક્ષાએ કહેવામાં આવ્યું છે, કારણ કે વાયુકાયિક છે જ વૈકિયશરીર પ્રગબંધ કરે છે. વાયુકાયિક સિવાયના અન્ય એકેન્દ્રિય જી તે વક્રિયશરીર પ્રગબંધ કરતા નથી. બીજે જે ભેદ કહ્યો છે તે પંચેન્દ્રિય જીવોની અપેક્ષાએ કહ્યો છે, કારણ કે પચેન્દ્રિય તિર્યંચે, મનુષ્ય, દેવે અને નારકે વૈકિયશરીર પ્રગબંધ કરતા હોય છે. वे गीतमस्वामी महावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे 3-(जइ एगिः दियवे उब्बियसरीरप्पओगयधे, कि पासकाइयएगिदियसरीरप्पओगबंधे य आउकाइय एगिदिय वेउब्वियसरीरप्पओगधे य ) 3 महन्त ! A8 रे मेन्द्रिय वैश्यि
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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