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________________ प्रमेयमन्द्रिका टी० ० ८ २०९ सू० ५ क्रियशरीरप्रयोगवन्धवर्णनम् २८५ जइभागो । एवं देसबंधतरं पि । वाउक्काइयवेउव्विय सरीरपुच्छा, गोयमा ! सबबंधंतरं जहण्णेणं अंतोसुहत्तं, उस्कोसेणं पलिओवमस्ल असंखेजइ भागं, एवं देसबंधंतरं पि । तिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउबियसरीरप्पओगवधंतरं पुच्छा,गोयमा ! सबबंधंतरं जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोलेणं पुवकोडीपुहुत्तं, एवं देसबंधंतरं पि मणुस्सस्त वि ॥ सू०५॥ छाया-वैक्रियशरीरपयोगवन्धः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञतः १ गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगवन्धश्च, पञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगवंधश्च, यदि एकेन्द्रिय क्रियशरीरप्रयोगवन्धः किं वायुकायिकैकेन्द्रियशरीरप्रयोगवन्धश्च, अवायुकायिकैकेन्द्रियशरीरमयोगवन्धश्च ? एवम् एतेन अभि ॥ वैक्रियशरीरप्रयोगवक्तव्यता ॥ 'वेवियसरीरप्पओगबंधेणं भंते ! कइविहे पणत्ते ?' इत्यादि। सूत्रार्थ-(वेउब्वियसरीरप्पओगधेणं भंते ! कविहे पण्णत्त) हे गौतम वैफियशरीरप्रयोगबंध कितके प्रकारका कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (दुविहे पण्णत्ते) वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध दो प्रकारका कहा गया है । (तं जहा) जो इस प्रकार से है ( एगिदिद्यवेउन्चियसरीरप्पओगबंधे य, पंचिंदिय वेउन्वियसरीरप्पओगबंधे य) एकेन्द्रिय क्रियशरीरप्रयोगबंध और पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोगवंध (जड़ एगिदिय बेउब्धिय सरीरप्पओगबंधे किं वा उक्काइय एगिदियसरीरप्पओगवंधे थ, अवा - वैठियशरी२प्रयोगपतव्यता :(वेउब्धियसरीरप्पओगबघे णं भते ! कइविहे पण्णत्ते ) त्या सूत्रार्थ-(वेउब्वियसरीरप्पओगव घे णं भते! कइविहे पण्णत्ते १). गौतम ! पै४ि५ शरीर प्रयोn visen प्रारना यो छ ? ( गोयमा !) के गौतम ! (दुविहे पण्णत्ते ) वैठिय २२ प्रया! vi५ मे २ना हो छ (तंजहा)२ मे प्रा। नीय प्रमाणे छे-( एगि दिय वेउब्वियसरीरप्पओगबधे य, पचि दियवेउव्वियसरीरोग'धे य) (१) भेन्द्रिय वैठिय शस२प्रयास vip मर (२) पयन्द्रियश्यि शरीर प्रयोn viध (जइ एगि दियचे उच्चियः सरीरप्पओगब घे कि बाउक्काइयएगिदिय सरीरप्पओगधे य, अघाउस्काइयं
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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