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________________ shreन्द्रिका टीका श० ८ उ०१ सू०४ औदारिकशरीरयोगवन्धवर्णनम् २३५ प्रयोगवन्धोऽपि देशवन्धोऽपि भवति, सर्वदन्धोऽपि भवतीति भावः, 'एवं पुढवीकाइया, एवं जाव' एवमुकौदारिकशरीरम योगन्धवदेव पृथिवीकायिकै केन्द्रियौदारिकशरीरमयगन्धोऽपि देशवन्वोऽपि भवति, सर्ववन्धोऽपि च भवति, एवं तथैव यावत् अकायिक- तेजस्कायिक- वायुकायिक वनस्पतिकाविकै केन्द्रियविकलेन्द्रियपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकौदारिकशरीरप्रयोगवन्धा देशबन्धाः अपि भवन्ति, सर्वबन्धाः अपि भवन्ति, इति भावः । गौतमः पृच्छति - 'मणुस्सर्पचिदियओरालियारीरप्पओबंधेणं संते! कि देसवंध, सव्वबंधे ? ' हे भदन्त ! मनुष्यपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगन्धः खलु किं देशबन्धो भवति ? सर्वबन्धो वा भवति ? भगवानाह - 'गोयमा ! - होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- ' एवं ' चेव' हे गौतम! औदाfta शरीरप्रयोग की तरह से एकेन्द्रिय औदारिक शरीरवध भी देशबंध रूप भी होता है और सर्वधरूप भी होता है । ' एवं पुढविकाइया एवं जाव ' उक्त औदारिक शरीर प्रयोगबंध की तरह ही पृथि वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोग बंध भी देश वरूप और सर्वधरूप होता है । इसी तरह से यावत् - अप्रकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक इन जीवों के भी औदारिक शरीरप्रयोगबंध देश बंधरूप भी होते हैं, और सर्वधरूप भी होता है । अब गौतमस्वामी पूछते हैं - ' मणुस्तपंचिदिय ओरालिय सरीरप्पओगवंघेणं अंते ! कि देसवघे ' हे भदन्त ! मनुष्यपंचेन्द्रिय का जो औदारिकशरीरप्रयोग बंध है वह क्या देश धरूप होता है या सर्वधरूप होता है इसके મહાવીર પ્રભુના ઉત્તર-~ "C एव चेव " हे गीत ! मोहारि शरीर प्रयोग મધની જેમ એકેન્દ્રિય ઔદ્યારિક શરીર પ્રયાગ મધ પશુ દેશમ ધ રૂપ પણ होय छे मने सर्वभध ३५ य होय छे. “ एवं पुढदिक्काइया एवं जाव " ઔદારિક શરીર પ્રયાગ મધની જેમ પૃથ્વીકાયક એકેન્દ્રિય ઔદારિક શરીર પ્રયાગ ખ`ધ પણ દેશખધ રૂપ અને સબધ રૂપ હાય છે. એજ પ્રમાણે અકાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક એકેન્દ્રિય, વિકલેન્દ્રિય, અને પચેન્દ્રિય તિય ચયેાનિક જીવાના ઔદારિક શરીર પ્રયાગના અધ પશુ દેશમાધ રૂપ પણ હાય છે અને સખધ રૂપ પણ હાય છે. गौतम स्वामीना प्रश्न - ( मणुस्स पंचिंदिय ओरालिय सरीरप्पओगव घेण भते ! कि देसत्र घे, सव्वबंध ? ) हे लहन्त ! मनुष्य यथेन्द्रियना ने सोहाકિ શરીર પ્રયાગ ખ ́ધ છે, તે શું દેશખ’ધ રૂપ હોય છે, કે સબંધ રૂપ હોય છે ?
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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