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________________ भगवतीसूत्रे " शुश्रूषमाणो नमस्यन् विनयेन प्राञ्जलिपुटो गौतमः एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीवगुरूणं भंते ! पडुच्च कइ. पंडिणीया पण्णत्ता ? ? हे मदन्त ! गुरून् धर्मतत्त्वोष - देशकान् खलु मतीत्य आश्रित्य कति कियन्तों प्रत्यनीकाः विरुद्वाचरणशीलाः प्रज्ञप्ताः ? प्रत्यनीकमिव प्रतिसैन्यमित्र प्रतिकूलतया ये वर्तन्ते तेऽपि प्रत्यनीकाउच्यन्ते, भगवानाह - ' गोयमा ' तओ पडिणीया पण्णत्ता ' हे गौतम ! त्रयः प्रत्यनीकाः गुरूणां विरोधिनः प्रज्ञप्ताः, तानेवाह - ' तं जहा - आयरियपडिणीए, महावीरस्वामी पधारे, महावीरस्वामी को वन्दना करने के लिये परिषद् आई वन्दना करके और धर्मोपदेश सुनकर के वह वापिस आ गयी । प्रभु से धर्मोपदेश सुनने की इच्छावाले गौतम ने प्रभु को दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया और फिर उनसे इस प्रकार से पूछा - ( गुरु णं भंते! पडुच्च कइ पडिणीया पन्नत्ता ) हे भदन्त । गुरु की अपेक्षा से कितनेक प्रत्यनीक कहे गये हैं- धर्मोपदेशकका नाम गुरु है । विरुद्धाचरण शील का नाम प्रत्यनीक है । प्रत्यनीक शब्द का अर्थ प्रतिसैन्य होता है । जैसे प्रत्यनीक सैन्य प्रतिकूल आचरण करने वाला होता है उसी प्रकार जो अपने गुरुजनों के प्रति प्रतिकूल आचरणशील होते हैं वे प्रत्यनीक कहे जाते हैं । इह्रीं प्रत्यनीकों के प्रकार जानने के लिये गौतम का यह प्रश्न है - उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा ) हे गौतम! (तओ पडिणीया पत्ता) गुरु की अपेक्षा लेकर प्रत्यनीक तीन प्रकार के कहे ८ રાજગૃહ નગરમાં મહાવીર પ્રભુ પધાર્યાં. તેમને વંદણા નમસ્કાર કરવાને માટે પરિષદ નીકળી. વંદણા નમસ્કાર કરીને તથા ધર્મોપદેશ શ્રવણુ કરીને પિરષદ વિસર્જિત થઈ ત્યારબાદ ધર્મોપદેશ સાંભળવાની ઈચ્છાવાળા ગૌતમ સ્વામીએ મહાવીર પ્રભુને વંદણા નમસ્કાર કરીને,બે હાથ જોડીને વિનયપૂર્ણાંક આ પ્રમાણે पूछ – “गुरूणं भ'ते ! पडुच्च कइ परिणीया पण्णत्ता ? " हे लहन्त ! गुरुनी અપેક્ષાએ કેટલા પ્રકારના પ્રત્યેનીક કહ્યા છે ? ધર્મોપદેશકને ગુરુ કહે છે. વિરૂદ્ધાચરણશીલને પ્રત્યેનીક કહે છે. “ अत्यनी४ ” शब्दना अर्थ प्रतिसैन्य ( हरी सेना ) थाय छे. नेवी रीते પ્રત્યનીક સૈન્ય ( પ્રતિ સૈન્ય ) પ્રતિકૂળ આચરણ કરનારૂં હાય છે, એ જ પ્રમાણે ગુરુજના પ્રત્યે પ્રતિકૂળ આચરણ કરનારા લેાકાને પણુ ગુરુપ્રત્યેનીક કહે છે. એવા ગુરુપ્રત્યેનીકાના પ્રકાર જાણવા માટે ગૌતમસ્વામીએ ઉપયુક્ત પ્રશ્ન પૂછ્યો છે. तेना उत्तर न्यायता महावीर अलुछे - " गोयमा ! " हे गौतम । " तओ पडिणीया पण्णत्ता " गुरुनानी अपेक्षा प्रत्यनी त्रयु प्राश्ना
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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