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________________ - - २४० भगवती वन्धान्तरं जघन्येन क्षुल्लकभवग्रहणं समयाधिकम् , उत्कर्षेण द्वे सागरोपमसहने संख्येयवाभ्यधिके जीवस्य । खलु भदन्त ! पृथिवीकायिकत्वे नोपृथिवीकायिकत्वे, पुनरपि पृथिवीकायिकत्वे, पृथिवीकायिकैकेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगवन्धान्तरं कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! सर्वबन्धान्तरं जघन्येन द्वे क्षुल्लकसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमन्भहियाई ) सर्वबंध का अन्तर जघन्य से तीन समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहणपर्यन्त, और उत्कृष्ट से संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम का होता है। ( देसवंधतरं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासमभहियाई ) तथा देशबंध का अन्तर जघन्य से एक समय अधिक क्षुल्लकभवग्रहण, और उत्कृष्ट से संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम का होता है। ( जीवस्सगं भंते ! पुढविकाइयत्ते नो पुढविकाइयत्ते पुणरवि पुढविकाइयत्ते पुढविकाइयए: गिदिय ओरालिय सरीरप्पओगवधंतरं कालओ केवच्चिरं होइ) हे भदंत, कोई जीव पृथिवीकाय की पर्याय में हो और बाद में वह वहां से मर कर पृथिवीकाय को छोड़कर अन्य पर्याय में चला जावे और फिर वही जीव पृथिवीकाय में आकर जन्म धारण करले, तो ऐसी स्थिति में पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर बंध का अंतर काल की अपेक्षा सकोसेण दो सागरोवमसहरसाई संखेज्जवासमन्महियाई) समधन मत२ જઘન્યની અપેક્ષાએ (ઓછામાં ઓછું) બે ક્ષુલ્લક ભવગ્રહણ કરતાં ત્રણ ન્યૂન સમય પર્યન્ત અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ (વધારેમાં વધારે ) બે હજાર सा२।५म ४२०i सयात अधिर वर्षनु जाय छे. (देस बध तरजहण्णेण खुडाग भवग्गण समयाहिये, उक्कोसेण दो सांगरोवमसहस्साई संग्वेज्जवास ममहियाई) तथा रेशम धनुं मत२ धन्यनी मपेक्षा क्षुद Aqs કરતાં એક અધિક સમયનું અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ બે હજાર સાગરેપમ કરતાં સંખ્યાત અધિક વર્ષનું હોય છે. (जीवरस ण भंते ! पुढविकाइयत्ते नो पुढविकाइयन पुणरवि पुढविकाइयत्ते पुदविकाइयएगि दियओरालियसरीरप्पओगधंतर कालओ केवच्चिर होइ १ ) હે ભદન્તા કેઈ જીવ પહેલાં પૃથ્વીકાયની પર્યાયમાં હોય, ત્યારબાદ ત્યાંથી મરીને તે પૃથ્વીકાય સિવાયની કેઈ બીજી પર્યાયમાં ઉત્પન્ન થાય, અને ત્યાંથી મરીને ફરીથી તે પૃથ્વીકાથમાં જન્મ લે, તે એવી સ્થિતિમાં પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય ઔદ્યારિક શરીરબંધનું અંતર કાળની અપેક્ષાએ કેટલું હોય છે?
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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