SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ भगवती तद्यथा पृथिवीकायिकैकेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगवन्या, एवं एएणं अभिलावणं भेदो , जहा ओगाहणसंठाणे ओरालियसरीरस्स तहा भाणियब्यो' एवंरीत्या एनेन पृथिवीकायिकैकेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगवं धविषय केण अभिलापेन भेदःअप्कायिकादिभेदो यथा प्रज्ञापनाया एकविंशतितमे पदे अवगाहनसंस्थाने औदा. रिकशरीरस्य प्रतिपादितः तथाऽत्रापि भणितव्यः 'जाव पज्जत्तगम्भवक्कंतिय मणुस्सपंचिंदियओरालियशरीरप्पओगबंधे य, अपज्जत्तगमवतियमणुस्स जावपंचिंदिय ओरालिय सरीरप्पओगधे य' यावत्-अप्कायिक तेजस्कायिक-वायुकायिक-वनस्पतिकायिकैकेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगः, विकलेन्द्रिय तिर्यग्यो. 'पुढविकाइय एगिदियओरालियसरीरप्पओगबंधे ' पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगवन्ध ' एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा जहा ओगाहणसंठाणे ओरालिय सरीरस्स तहा भाणियन्यो' इस पृथिवी. कायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगध विषयक अभिलाप से अपकायिकादि का भेद जैसा प्रज्ञापना के २१ वें पद् अवगाहनासंस्थान में औदारिकशरीर का कहा गया है वैसा यहां पर भी कहना चाहिये-- 'जाव पज्जत्तगम्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदिय ओरालियसरीरप्पओगबंधे य' यावत् पर्याप्त गर्भज मनुष्यपंचेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबंध' यहां तक यहां यावत् शब्द से-" अप्रकायिक. तेजस्कायिक, वायुका-- यिक, वनस्पतिकायिक इन एकेन्द्रिय जीवों के औदारिकशरीरप्रयोगबध का, विकलेन्द्रिय के औदारिकशरीरप्रयोगबंध का, पंचेन्द्रियतिर्य ____ मडावीर प्रभुना Gत्तर-" गोयमा !" गौतम ! (पंचविहे पण्णत्ते तजहा ) मेन्द्रिय मोहरि शरी२ प्रयास गधना नीये प्रभार पांय प्रार Bा छ-( पुढविकाइय एगिदियओरालियसरीरप्पओगव ) पृथ्वी यि सन्द्रिय महा२ि४ शरी२ प्रयो। मध ( एवं ए ए ण' अभिलावेणं भेदो जहा ओगाहणसंठाणे ओरालियसरीरस्स तहा भाणियव्वो) प्रज्ञापन सूत्रना २१ માં અવગાહન સંસ્થાન પદમાં પૃથકાયિક એકેન્દ્રિય ઔદ્યારિક શરીર પ્રયોગ બંધ વિષયક અભિલાપ દ્વારા અપૂકાયિક આદિ ભેદનું જેવું કથન કરવામાં मायुं छे, मे मडी ५५ ४ नये. (जाव पज्जत्तगन्भवतिय मणुरस पंचिंदिय ओरालियसरीरप्पओगव धे य, “ पर्यात म मनुष्य पयन्द्रिय मोहार शरीर प्रयोग मध" सुधीन ४थन मडी अड ४२७. मडी (जाव) (કાવત) પદથી અકાયિક તેજસકાયિક, વાયુકાયિક, અને વનસ્પતિકાયિક એકેન્દ્રિય જીના ઔદારિક શરીર પ્રયોગ બંધને, વિકલેન્દ્રિયના દારિક કરીર પ્રગ બંધને, પંચેન્દ્રિય તિર્યનિક દારિક શરીર પ્રયોગ બંધને,
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy