SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीस्त्रे ૨૨૨ " बंधे समुपज्ज' हे गौतम! देशसंहननान्यो यत् खलु शकट-रथ-यान-युग्यगिल्लि थिल्लि - शिविका-रयन्दमानिका लोही - लोहकटाहकइच्छुकाऽसन - शयन-स्तम्भ - भाण्डाऽमत्रोपकरणादीनां देश संहननबन्धः समुत्पद्यते, तत्र युग्यं गोल्लदेशे मसिद्धो माणवेदिकायुक्तो जम्पानविशेषः, गिल्लि:- गजपृष्ठास्तपः रणविशेषः, 'अवाडी' इति भाषाप्रसिद्धः, चिल्लि' घोटकद्वययुक्तो यानविशेषः 'बग्गी' इतिभाषाप्रसिद्धः, शिविका-कूटा-कारेणाच्छादितो जम्पान विशेषः स्यन्दमानिकावा - पुरुषप्र माणो जम्पानविशेषः, लोही व्यञ्जनपचन भाजन विशेषः, लोहकटाहो भाजन विशेषः, कडुच्छुकः दवपदवाच्यः परिवेपणपात्र विशेषः, भाण्डम् मृन्मयभाजनम्, अमत्र' लोही लोहकडाह कडुच्छय आसणसवण खंभभंडमन्तो वगरहमाईणं देस संहणणावचे समुपज्जइ ) हे गौतम! शकट, रथ, यान, युग्य, गिल्लि, थिल्ली, शिक्षिका, स्पन्दसानिका, लोही, लोहकटाह, करछी, आसन, शयन, स्तंभ, भाण्ड तथा और भी अनेक प्रकार के जो उपकरणसो इनका जो संबंध होता है वह देशसंहहनन बंध है । गोलदेशप्रसिद्ध, हस्त प्रमाणवेदिका से युक्त जो जम्पानविशेष है उसका नाम युग्य है, जिसे आज की भाषा में रिक्सागाडी कहते है । अंबाडी का नाम गिल्लि है। दो घोड़ों से युक्तवानविशेषका नाम-जिसे भाषा में 'वग्गी' कहते हैं थिल्लि है । कूटाकार से आच्छादित जम्पानविशेष पुरुषप्रमाण होता है उसका नाम स्यन्दमानिका है । व्यञ्जनको पकानेका जो भाजनविशेष होता है उसका नाम लोही तथा है, लोहकदाह - लोहे की कडाही का नाम है | जिससे दाल आदि पदार्थ परोसे जाते हैं उसका नाम लोह कडाहकडुच्छुयआसण सचणखं भभडमत्तोवगरणमाईण देससंहणणा व वे समुप्पज्जइ ) हे गौतम! शट ( गाडु ), रथ, यान, युग्य, गिल्सि, थिटिस, शिमिश, स्यन्दभानिञ्ज, तावडी, बोड उडाली, अच्छी, आसन, शयन, स्त'ल ભાંડ તથા ખીજા વિવિધ પ્રકારના ઉપકરણેાના જે સબંધ હાય છે, તે દેશ સહનન મધ છે. ગેલ દેશપ્રસિદ્ધ, એ હાથ પ્રમાણ વક્રિકાથી યુકત જે वाहनविशेष छे, तेने ( युग्य) हे छे, (नेने डासां रिक्षा हे छे. (जिसिस) એટલે અખાડી ( થિલ્ટિ) એટલે એ ઘેાડા જેડેલી ગાડી અથવા ખગ્ગી, ( શિખિકા ) એટલે પાલખી પુરુષપ્રમાણ મ્યાનાને સ્યન્દમાનિકા કહે (सोही) શાક વગેરે પકાવવાની તવીને કહે છે, લેાઢાની કડાહીને ( લાડુ કટાહ ) કહે छे, नेना वडे द्वाज साहि पहार्थ पिरसवामां आवे छे, तेने उच्छी (कडुच्छ्रय)
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy