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________________ मैगवती संमत्पद्यते, जघन्येन अन्तमुहूर्तम् , उत्कर्षेण संख्येयं कालम्', स एष समुच्चन यवन्धः, अथ का स संहननवन्धः ?, संहननबन्धो द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथादेशसंहननवन्धश्च, सर्वसंहननबन्धश्च अथ कः स देशसंहननवन्धः ? देशसंहननबन्धों यत् खलु शकटरथयानयुग्यगिल्लिथिल्लिशिविकास्यन्दमानिका लोही लोहकटाह कडच्छुकाऽऽसन-शयन-स्तम्भ-भाण्डा-ऽमत्रोपकरणादीनां देशसंहननवन्धः समः महापथमार्ग,-राजमार्ग इत्यादि का चूना द्वारा कीचड़ द्वारा और श्लेष के समुच्चय द्वारा जो बंध होता है वह समुच्चयं बंध है। (जहणणं अंतोमुत्त, उक्कोसेणं संखेज्जंकालं) यह बंध जघन्य से अन्तमुहर्त तक और उत्कृष्ट से संख्यातकाल तक रहता है। (से सं समुच्चयबंधे) इस प्रकार से यह समुच्चयबंध का स्वरूप है। (सें किं तं साहणणा बंधे) हे भदन्त ! संहननबंध का क्या स्वरूप है ? (साहणणावधे दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! संहनन बंध दो प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) जो इस प्रकार से है-(देससाहणणा बंधे ये संवसाहणणा बंधे य) १ देशसंहनन बंध, २ सर्वसंहननवेंध (से कि तं देससाहणणाबधे ) हे भदन्त ! देशसंहननबंध का क्या स्वरूप है ? (देससाहणणा बंधे जणं सगड-रह-जाणं-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीयसंदमाणिया, लोही-लोहकडाह-कडच्छुआसणसयण खंभ भंडमत्तोवर्गरणमाईणं देससाहणणबिंधे समुप्पज्जइ ) हे गौतम ! शकट, रथ, यान, युग्यवाहन-घोडागाडी, गिल्ली-हाथी की अंबाडी, थिल्लि-वग्गी शिक्षिका ચતુર્મુખ માર્ગ, મહાપથ (રાજમાર્ગ), ઈત્યાદિને ચૂના દ્વારા, કીચડ દ્વારા અને શ્લેષ (વજીલેય) ના સમુચ્ચય દ્વારા જે બંધ થાય છે તે બંધને સમુચ્ચ બંધ छ. ( जहाणेणं अतो मुहत्तं; उकोसेणं संखेजंकाल) मा मध माछामा माछ। ४ मतभुतः सुधी- मने पधारेभां-धारे. सध्या सुधा २३ छे. (सें त समुच्चयबधे ) मा प्राप्तुं समुव्यय धनु ५१३५ छे. (से कि त साहणणा बधे ?) 3 महन्त ! सनन धन २१३५ छ १ (साहणणा बधे दुविहे पण्णत्ते-तजहो) 8 गौतम ! सनन मधन नीय प्रमाणे मे २ छे-(देससाहणणा वधेय, सव्वसाहणणाबधे य) (१) देश सनन म भने (२) सर्व सहनन मध. ( से किं त' देसखाहणणाब'धे ?) 8 महन्त ! शE सनन मध २१३५ छ १ ( देसंसाहणणाधे जणं सगडरेह-जाण-जुग्ग -गिल्लि, थिल्लि सीय-संदमाणिया-लोही-लोहकडाह, कइच्छु-आसणसयण खंभ भडः मत्तोवगरणमाइणं देससाहणणावधे समुप्पज्जइ) 8 गौतम ! शट (गाई); २५, यान, युज्य पालन (घोडा), मि (पाथीनी. Am); AC
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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