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________________ 20 १४ भगवती से किं तं बंधणपन्चहाए ? ' हे भदन्त ! अब कि स बन्धनप्रन्यायिका सादिबन्ध उच्यते? भगवानार-'बंधाणपञ्चप जणं परमाणपुग्गलाणं दुपा सियाणं, तिप. एसियाणं जाव दसपएसियाणं संखेन्जपणसियाणं, अणंतपारमियाणं भने! ग्वाणं : हे गौतम ! बन्धनात्ययिकः सादिवन्धः - यत् खल्लु परमाणुपुहलानां द्विपदेगकाना, त्रिप्रदेशिरानां यावत् चतुःपञ्चपदसमाष्ट नवदामदेगिकानाम् 'संख्येयप्रदेशिकानाम् , असंख्येयमदेशिकानाम् अनन्तप्रदेशिकानां स्कन्धानाम् 'वेमायनिद्धयाए, बेमायलुक्खयाए, बेमायनिहलुवयाए बयणपन्चटा ग बधै सगुप्पज्जा, प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से किं तं बधणपच्चइए' हे भदन्त ! यह यन्धनप्रत्ययिक सादि बंध क्या कहलाता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'बंध. णपच्चइए जं णं परमाणुपोग्गला दुपएसिया, तियपालिया, जाब दसपएसिया, संखेजपनिया, असंखेन्जपपसिया, अणंतपपसिया णं भंते ! वधाणं' हे गौतम ! बंधनात्यधिक सादिवंध वह है जो परमाणुपुद्गलों का, हि प्रवेशिकों का, त्रिप्रदेशिकों का, यावत् चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ, दश, प्रदेगिकों का, मंग्यानप्रदेगिकों का, असंख्यानप्रदेशिकों का, अनन्तप्रदेशिकों का अर्थात् ऐसे परमाणु पुद्गलस्कन्धों का -(वेमायनिद्धयाए, पेमायलखवाए बेमायनिहलुग्वयाए ) विपनस्निग्धता गुण के द्वारा-विषम है मात्रा जिसमें ऐसी जोस्निग्धता, उम विषमांश स्निग्धता के द्वारा, विपमांगरूक्षता के द्वारा, विपाशस्निग्धता और रूक्षता इन दोनों के द्वारा उत्पन्न होता है । यह व धन प्रत्यપ્રાપ્તિ જે સાદિક વિશ્વસા બંધમાં કારણરૂપ હોય છે, તેને પરિણામ પ્રત્યયિક સાદિક વિસ્તકા બંધ કહે છે वे गौतम स्वामी महावीर प्रमुने सो प्रश्न पूछे छ -(से कि त बंधणपच्चइए ! ) 3 महन्त ! ते ॥धन प्रत्याय४ साह ५५ अने ४९ छ ? महावीर प्रभुने। उत्तर-(बधणपच्चइए जं णं परमाणुपोगाला दुपएसिया, तियपएसिया, जाव दसपपसिया, संखेजपएसिया, असंखेज एसिया, अणतपएसिया ण खधाण) , गौतम ! धन प्रत्ययि साधते छ रे ઢિપ્રદેશિક, ત્રિપ્રદેશિક, અને રસપ્રદેશિક પર્યન્તના પરમાણુ પુલ સ્કોના, તથા સંખ્યાત પ્રદેશિક, અસંથાત પ્રદેશિક અને અનંત પ્રદેશક પરમાણુ पुस २४-धाना ( वेमायनिद्धयार, वेमायलुक्खप.ए, वेमायनिद्धलुखियाए) વિષમ સ્નિગ્ધતા ગુણ દ્વારા (ચીકાશના ગુણ દ્વારા) જેમાં સ્નિગ્ધતાની માત્રા વિષમ છે એવી વિષમાંશ સ્નિધતા દ્વારા વિશ્વમાંશ રૂક્ષતા દ્વારા, વિષમાંશ
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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