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________________ भगवती सूत्रे १६८ - टीका – 'वीससावणं भंते ! कवि पण्णत्ते ?' गौतमः पृच्छति - दे भदन्त ! सिन्धः सिया स्वभावेन सम्पन्नो बन्धः विस्रसावन्धः खलु कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - 'गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते ' हे गौतम ! विसावन्धो द्विविधः प्रज्ञप्तः, ' तं जहा - साइए विससाबन्धे, अणाइए वीससावधे य ' तद्यथा - सादिक: साबन्धः, अनादिकः विसावन्धथ, तत्र आदिना सहितः सादिको विस्रसाबन्धो व्यपदिश्यते, आदिना रहितोऽनादिको विस्रसावन्ध उच्यते, गौतमः पृच्छति - टीकार्थ - यथासंख्यन्याय को आश्रय करके सूत्रकार को प्रथमप्राप्त प्रयोगबंध का कथन करना चाहिये था पर ऐसा न करके जो सूत्रकार ने पश्चात् पठित भी विस्रसा बंध का कथन किया है वह सूचीकटाहन्याय को आश्रित करके किया है । इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है( वीससा बधे णं भंते! कहविहे पण्णसे) हे भदन्त । वित्रसाबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? जो बन्ध स्वभाव से होता है - वह चित्रसाध है । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोयना ' हे गौतम! ( विहे पण्णत्ते) विसावध दो प्रकार का कहा गया है (तं जहा ) जो इस प्रकार से हैं - ( सायविससावधे, अणाइयविससावधे य) एक सादिक विसावध और दूसरा अनादिक विसावध जो स्वाभाविक बंध विसावध आदिसहित होता है - वह सादिकविसाबंध है । प्रारंभरहित जो बध है - वह अनादिकविसा बंध है। अब गौतमस्वामी' ટીકા યથાસ બ્યન્યાયને આશ્રય લઈને સૂત્રકારે પહેલાં પ્રયેાગમ ધનુ નિરૂપણુ કરવું જોઇતું હતું-પણ એવું ન કરતાં સૂત્રકારે જે વિસસાખ ધનુ નિરૂપણ કર્યું છે તે સૂચીકટાહ ન્યાયને આશ્રિત કરીને કરવામાં આવ્યુ છે. તેમાં ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એવા પ્રશ્ન પૂછે છે કે— (वीससात्र घेणं भते ! कइ विहे पण्णत्ते ? ) डे ભદન્ત । વિસા ખધ કેટલા પ્રકારના કહ્યો છે ? ( જે બધ સ્વભાવથી થાય છે, તે બધને વિસસા મધ કહે છે ) महावीर प्रभुने। उत्तर- " गोयमा ! ” हे गौतम । ( दुविहे पण्णत्ते ) विखसा अधना मे अक्षर ह्या छे. " त जहा ” ते प्रहारो नीचे प्रमाणे छे( माइय विसछाव धे, अणाइयविससा बधे य ) (१) साहि विसा मध અને (ર) અનાદિક વિસષ્ઠા મધ જે સ્વભાવિક બંધ ( વિશ્વસા બધ ) આદિ સહિત હાય છે, તેને સાદિક વિસસા મધ કહે છે છે તેને અનાદિક વિસ્રસા મધ કહે છે. પ્રારભ રહિત જે મધ
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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